पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 35.pdf/५३१

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५०३
भाषण : काठियावाड़ राजनीतिक परिषद, पोरबन्दरमें

व्यक्तिगत आलोचना सम्बन्धी दो प्रस्ताव रखे गये थे, किन्तु मैंने उन प्रस्तावोंको पास न करनेकी सलाह दी। बादमें मुझे खयाल आया कि जिन कारणोंसे मैंने उपर्युक्त कदम उठाया था उन्हें देखते हुए एक निश्चित अवधितक इस कदमको वापस नहीं लिया जाना चाहिए। यदि हम इस प्रस्तावको पास नहीं करते तो हमारा अस्तित्व खतरेमें पड़ जायेगा। किन्तु किसीके मनमें यह शंका उठ सकती है कि मौतको टालनेकी खातिर ऐसा अंकुश क्यों लगाया जा रहा है। यदि किसी सदस्यकी ओरसे ऐसा प्रस्ताव रखा गया होता तो समितिने उसे रद्द कर दिया होता। किन्तु समिति और काठियावाड़ियोंने मुझपर विश्वास करके मेरी जिम्मेवारी बढ़ा दी है और उस प्रस्तावको पास करके आप भी मेरी जिम्मेवारी बढ़ा देंगे। 'गलतफहमी' जैसे शब्द जो प्रस्तावमें आये हैं उन्हें युवकवर्गको सहन करना होगा।

भावनगर अधिवेशनके[१] समय जामनगर और गोंडल राज्योंका प्रश्न ही परिषद के सामने आया था। मैं जाम साहबसे मिला और उनसे चर्चा की। समस्या क्या थी और क्या है यह तो मैं जानता हूँ, किन्तु कामका बोझ अधिक होनेके कारण उस चर्चासे मैं पूरा लाभ नहीं उठा सका। फिलहाल तो मैं आपको यह नहीं बता सकता कि इस मामलेमें मेरी हार हुई या जीत। हालाँकि गोंडलके ठाकुरके हाथों मुझे हार खानी पड़ी है फिर भी मैंने उनकी व्यक्तिगत आलोचना नहीं होने दी।

आज परिषद अशक्त, लूली और अन्धी है और मेरा यह विश्वास होनेके कारण कि व्यक्तिगत आलोचना नहीं करनी चाहिए मैंने भावनगर में तथा यहाँपर यह माँग की है ताकि परिषद में व्यक्तिगत प्रस्ताव या आलोचना न की जा सके। परिषद में भाग लेनेवाले और अधिकारीगण प्रस्तावोंके बारेमें सतर्क रहें। वे अपने करने योग्य कार्य करें। राजा प्रजाके बीच घुल-मिलकर, राजाओंमें उनके दोष गिनानेके लिए उत्सुक होते हुए भी यदि वे अपनी वाणी, लेखनी और जीभको काबू में रखें तो इस संयमका पालन करनेसे हमें लाभ ही होगा। जिसे परिषद् के दो अधिवेशनों में स्वीकार किया है, उस प्रतिबन्धका पालन हमें अपनी कमजोरीका ध्यान रखते हुए भविष्य में भी करना चाहिए। जिस व्यक्तिको अपनी कमजोरीका ज्ञान है यदि वह उसे दुनियाके सामने रख दे तो उसका भार कम हो जाता है।

यदि कोई यह पूछे कि प्रतिबन्ध लगा देनेके बाद बहादुर लोग क्या करेंगे तो इसके उत्तरमें मैं कहूँगा कि ऐसे बहादुर लोगोंका स्थान परिषदमें नहीं बल्कि उसके बाहर है। वे अपनी अलग समिति बनायें। यह परिषद सत्याग्रहियोंके लिए नहीं है और न कांग्रेस ही उनके लिए है। यह परिषद उनपर तो कोई प्रतिबन्ध नहीं लगा रही है। सत्याग्रही आलोचना करें किन्तु निन्दा तो कदापि न करें। यदि कोई यह पूछे कि रियासत में भ्रष्टाचार होता हो तो क्या करना चाहिए तो मैं इसके उत्तरमें यह कहूँगा कि रियासतके मामलोंकी आलोचना करनेकी हिम्मत हममें आनी चाहिए, किन्तु यदि प्रजा ही निर्बल होनेके कारण उसे सहन कर ले तो हमें उनके बीच काम करते हुए उनकी सहायता करनी चाहिए। अन्याय तो वहाँ है ही किन्तु उसे दूर

  1. गांधीजीको अध्यक्षतामें ८ जनवरी १९२५ को हुआ था; देखिए खण्ड २५, पृष्ठ ५८५-५९८।