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३६९. पत्र : सुरेशचन्द्र बनर्जीको

सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
१९ जनवरी, १९२८

प्रिय सुरेश बाबू,

आपका पत्र[१] मिला। कोमिल्ला वाला मामला राजी-खुशी निपट गया इसकी मुझे खुशी है। यह सुधार आन्तरिक है या ऊपरसे थोपा गया सुधार है?

जहाँतक मेरे स्वास्थ्यका सम्बन्ध है, मेरा मन डा॰ राय द्वारा भेजी गई दवाको लेनेके लिए तैयार नहीं हो सका। यह तो मानव-शरीरमें से निकाली हुई चीज है और ऐसी किसी भी दवाको लेना मेरे लिए अत्यन्त अरुचिकर है। लेकिन मैंने अपने आहारमें जबर्दस्त परिवर्तन किये हैं। मैं अब केवल फलों और थोड़े पिसे हुए बादाम तथा नारियलके दूधपर रह रहा हूँ। अभीतक मुझे कोई कष्ट नहीं हुआ है।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३०४५) की फोटो-नकलसे।

३७०. पत्र : सतीशचन्द्र दासगुप्तको

सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
२० जनवरी, १९२८

प्रिय सतीशबाबू,

विदेशी कपड़ेके बहिष्कार तथा मिलोंके बारेमें मालवीयजीके विचार मैंने पढ़े हैं। मुझे मिलके कपड़े तथा इन्फ्लूएन्जाके बारेमें कही गई आपकी बात याद है। मैं 'यंग इंडिया' में बहिष्कारके बारेमें चर्चा करनेकी आशा रखता हूँ।[२]

मैंने अब नया सफरी चरखा जाँच लिया है। इसकी तीलियाँ ढीली हो गई हैं और इसकी धुरी कभी हल्की नहीं चली और जब आपने पहले देखा था, उस

  1. सुरेश बाबूका ११-१-१९२८ का पत्र, जिसमें कहा गया था : "कोमिल्ला में सभी साम्प्रदायिक मामलोंपर सन्तोषजनक समझौता हो जानेके परिणामस्वरूप हम सब रिहा कर दिये गये हैं।. . .मुझे आशा है कि इसके फलस्वरूप पूर्ण सद्भाव और शान्ति बनी रहेगी।. . ."
  2. देखिए "ब्रिटिश मालका बहिष्कार", २६-१-१९२८।