पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 35.pdf/५२७

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४९९
पत्र : विधानचन्द्र रायको

रहेगी। आहार-विषयक प्रयोगोंके बारेमें मेरी कमजोरी आप जानते हैं। और जबसे आपने मेरे शरीरमें यूरिक ऐसिड (मूत्राम्ल) की बहुलताका पता चलाया है तबसे मैंने अपने भोजनमें भारी फेरबदल करने की आवश्यकता महसूस की है। आश्रममें अपेक्षतया अधिक सुस्थिरताने मुझे यह अवसर प्रदान किया है और अब मैं केवल ताजे फल और काष्ठफल ले रहा हूँ। मेरे आहारमें अब मुनक्केकी चाय है जिसके मतलब हैं उबले हुए ४० मुनक्के जिनका छिलका और बीज निकाल दिये गये हों। इसे मैं दिनमें तीन बार लेता हूँ और हर बार उसमें बादामकी आधा आउंस गिरी मिला लेता हूँ और दो बार नारियलकी गिरीका दूध तथा हर बार एक या दो सन्तरे लेता हूँ। नारियलका दूध तैयार करनेके लिए एक ताजा पका हुआ नारियल कुचल कर उसमें थोड़ा पानी मिलाकर उसे मजबूत खादीके कपड़े में से छान लिया जाता है। इसे मैं पिछले एक पखवाड़ेसे बिना कोई नुकसान उठाये करता रहा था। टट्टी कहीं ज्यादा नियमित है। मेरा वजन नहीं लिया गया है और न रक्तचाप लिया गया है, लेकिन मैं काफी अच्छा अनुभव करता हूँ। मैंने वजन और रक्तचाप जानबूझ कर नहीं दिया है, क्योंकि यदि मैं अन्यथा ठीक-ठाक हूँ तो उससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

चूँकि आपने मेरे स्वास्थ्यमें इतनी दिलचस्पी ली है इसलिए मुझे लगा कि मेरा फर्ज है कि जो परिवर्तन मैंने किया है वह आपको सूचित कर दूँ और आपने इतना खयाल करके जो दवा भेजी है उसे मैं क्यों नहीं खाऊँगा, इसका कारण भी बता दूँ। मैं चाहूँगा कि भारतीय चिकित्सक लोग मौलिक अनुसन्धान करें और आहार-परिवर्तनकी सम्भावनाका पता चलायें। यह हो सकता है कि जन-साधारण रोगकी चिकित्साके संयम-साध्य तरीकोंको नहीं अपनायेंगे, लेकिन क्या मुझ जैसे बेचारे मतान्ध व्यक्तियोंके लिए चिकित्साशास्त्रियोंके दिल-दिमागमें कोई स्थान नहीं होना चाहिए? क्या भारतीय चिकित्सकोंको चिकित्सा-विज्ञानको कोई नई देन नहीं देनी है? या भारतको हमेशा पेटेंट कराई हुई कटवैदकी दवाओंपर ही निर्भर करना होगा जिन्हें अन्य विदेशी मालोंके साथ इस अभागे देशमें झोंक दिया जाता है? अनुसन्धान करनेके मामलेमें पश्चिमका एकाधिकार क्यों होना चाहिए?

इस पत्र की प्राप्ति स्वीकार करने या इसका उत्तर देनेकी जरूरत नहीं है, जब तक कि आप मुझे कोई निर्देश न देना चाहते हों। अतः यदि आपको बतौर सलाह और मार्गदर्शनके मुझसे कुछ और कहनेको न हो, तो आप इस पत्रको रद्दी कागजकी टोकरी में फेंक दे सकते हैं।

हृदयसे आपका,

डा॰ विधान राय
कलकत्ता
अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३०४४) की फोटो-नकलसे।