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अपरिवर्तनवादियोंसे
और सबसे जबर्दस्त कारण है खद्दर।. . .वह तो खादी को ही असल दुश्मन समझते हैं।. . .वह कहते हैं :
"खद्दर वह देशी कपड़ा है जो बाबा आदमके जमानेके करघोंपर हाथ-कते सुतसे नौसिखुए और नये-नये बुननेवाले बुनते हैं। खद्दर मोटा, कड़ा, गाँठ-गठीला और दोषोंसे भरा होता है। वह सदा ही मैला दिखलाई पड़ता है। मगर तो भी उसका चलन खूब है, धनी हिन्दुस्तानी भी खद्दरका कपड़ा पहनने में गौरव मानते हैं, क्योंकि दिन-दूने रात चौगुने बढ़नेवाले राष्ट्रीय दलकी इस पुकारका कि 'हिन्दुस्तान हिन्दुस्तानियोंके ही लिए है' खद्दर प्रत्यक्ष और ठोस रूप है। इसपर खर्च होनेवाली एक कौड़ी भी विदेशोंमें नहीं जाती। इसे जो पहनता है, वह हिन्दुस्तान के करोड़ों भूखोंको खाना देता है, अपने देशकी स्वतन्त्रता घोषित करता है और अपनेको अव्वल दर्जेका देशभक्त साबित करता है। खद्दर महात्मा गांधीका एक शस्त्र है और भारतवर्षमें विदेशी शासन के विरुद्ध संघर्ष में उन्होंने इसका आविष्कार किया था। महात्मा गांधी आधे सन्त, आधे धर्मान्ध और पूरे देशभक्त हैं। वे खुद अपने आप और देशी समाचारपत्रोंके जरिये भी देश के शिक्षित वर्गके हृदयोंपर सीधा असर करते हैं। आज हिन्दुस्तानमें असहयोगका शोर नहीं होता तो इसका मतलब यह नहीं कि वह मर गया है। यह तो अब उस स्थितिमें पहुँच गया है कि जब कोई शोरोगुल न होते भी यह खतरनाक रूप से सक्रिय है।. .‌ .एक बार महात्मा गांधीके प्रचारकोंने जनताका मत फेरा नहीं कि फिर हिन्दुस्तान विदेशी मालका छोटा खरीदार भी नहीं रहेगा—बल्कि खरीदार रहेगा ही नहीं।. . .यह वार केवल कपड़ेपर ही नहीं किया गया है बल्कि इससे तो सभी ब्रिटिश मालका व्यापार ही चौपट कर देनेकी जानबूझकर कोशिश की जा रही है।"
इन बातों से तो महात्मा गांधीके प्रेरणादायक नेतृत्वमें खद्दरका प्रचार करनेवाले कार्यकर्त्ताओंकी छाती दो गज चौड़ी ही हो जायेगी।. . .मि॰ रॉबर्टसनको डर है और. . .वह सुझाते हैं कि हिन्दुस्तान में ऐसे विचारोंका प्रचार करनेके लिए कुछ किया जाये कि 'हिन्दुस्तान की कपासका लंकाशायर वाला कपड़ा', 'हिन्दुस्तानका सबसे अच्छा ग्राहक लंकाशायर है', 'लंकाशायरके कपड़े खरीदने से हिन्दुस्तानी किसानोंको सहायता मिलती है।' दोनों देशोंके सम्बन्ध स्वार्थपूर्ण प्रचारसे नहीं, बल्कि भारतीयोंकी राष्ट्रीय माँगें पूरी करने से ही ठीक-ठीक जुड़ेंगे और लंकाशायरके भारतीय व्यापारके विरुद्ध जो शक्तियाँ काम कर रही हैं, वे हट सकेंगी।

यह तो कहना ही फिजूल है कि खादी कोई धमकी नहीं है। स्वराज्यके समान यह भी राष्ट्रीय जीवनके लिए श्वासकी तरह आवश्यक है। चाहे जिस उदारतासे हमारी माँगें क्यों न पूरी की जायें, मगर जिस तरह हम स्वराज्यको नहीं छोड़ सकते,

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