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अपरिवर्तनवादियोंसे

लिए अपनी सभी शाखाओंमें भुगतान करना मंजूर कर लिया है। कोषाध्यक्षका पता है—३९५, कालबादेवी रोड, बम्बई।

बतौर ट्रस्टीके हम चार आदमियोंके नामपर कोषाध्यक्ष अपने पास जमा हुई सारी रकम रोके रहेंगे, और वह तभी दी जायेगी जब जामियाके नामपर एक समुचित ट्रस्ट बना दिया जायेगा।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १९-१-१९२८

३६६. अपरिवर्तनवादियोंसे

मैं देखता हूँ कि यह खबर कि इसी महीने में किसी समय अपरिवर्तनवादियोंकी एक बैठक साबरमती में होनेवाली थी, किसी तरह अखबारवालोंके पासतक पहुँच ही गई। शायद यह अवश्यम्भावी था। परन्तु सभी सम्बन्धित लोगोंको मुझे यह सूचित करते हुए खेद है कि कमसे कम हालके लिए तो यह खयाल छोड़ ही दिया गया है। कोई कार्यक्रम निश्चित करने और सामान्य विचार-विनिमय के लिए बहुतसे अपरिवर्तनवादी ऐसी बैठकका सुझाव बहुत दिनोंसे दे रहे थे। इस माँगने मद्रास कांग्रेस में बड़ा जोर पकड़ लिया था जब कि कांग्रेस में आये हुए अपरिवर्तनवादियोंको लगा कि कई एक प्रस्तावों के बारेमें उनको एक निश्चित और संयुक्त नीति अपनानी चाहिए और कांग्रेसके भीतर ही उनको एक अलग दलके रूपमें काम करने योग्य बनना चाहिए। मुझे अलग दल बनानेका खयाल बहुत जँचा नहीं; मगर चर्चाके लिए अपरिवर्तनवादियोंकी बैठक बुलाने के मैं विरुद्ध नहीं था। मगर मैं जब इस आशयका परिपत्र लिखने बैठा, तो मैंने देखा कि यह मुश्किल काम है, और बुलाये जानेवाले लोगोंके नाम चुनना मी कुछ कम टेढ़ी खीर नहीं है। सच पूछो तो मुझे दोनों ही काम असम्भव से लगे। इस प्रश्नपर और गहरा विचार करनेपर मैंने देखा कि ऐसी कोई बैठक करनेसे शायद डा॰ अन्सारी मुश्किल में पड़ जायेंगे और ऐसी बातोंपर वाद-विवाद करनेसे, जिनको हम मजे में किसी दूसरे अच्छे अवसरके लिए मुल्तवी रख सकते हैं, बहिष्कारकी ओरसे देशका ध्यान इस ओर खिंच आयेगा और जिससे बहिष्कारका राष्ट्रीय कार्यक्रम पूरा करना शायद और अधिक मुश्किल हो जायेगा। फिर मैंने यह भी देखा कि जबतक मैं जिन्दा हूँ, सर्व-सुलभ हूँ और मेरा दिमाग ठीक और स्वस्थ है, तबतक मेरे बिना कट्टर असहयोगियोंका जो अपरिवर्तनवादी दल बनाया जायेगा वह सम्भवतः पूरी तौरपर जोरोंसे काम नहीं कर सकेगा। और इस प्रस्तावित बैठकके सुझावकी जड़में खयाल यह था कि एक दल ऐसा बनाया जाये कि जिसमें मेरा शामिल होना जरूरी न रहे। सिद्धान्तके रूपमें यह भले ही सम्भव हो, मगर व्यवहारमें तो बहुत-सी बातोंपर मेरी राय पूछी ही जायेगी, और मैं उन बहस-मुबाहिसों में शामिल रहकर, जिनमें वे सवाल पैदा होंगे, जो राय दे सकूँगा, उसकी बनिस्बत, उनमें शामिल हुए बिना ही मेरी जो राय होगी, उसके कहीं अधिक गलत होनेकी सम्भावना है। इन सब