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३६५. अजमल जामिया-कोष

स्वर्गीय हकीम अजमल खाँ साहबकी स्मृतिमें और नेशनल मुस्लिम यूनिवसिटीकी आर्थिक नींव पक्की करनेके लिए जो कोष खोला जानेवाला है उसके बारेमें डा॰ अन्सारीने मुझे पत्र लिखा है। डा॰ अन्सारीने यह कहनेकी इजाजत दे दी है कि डा॰ अन्सारी और प्रिन्सिपल जाकिर हुसेन इस अपीलमें मेरे साथ हैं। श्रीयुत जमनालाल बजाजने इस कोषका कोषाध्यक्ष, बनना स्वीकार किया है। हिन्दू और मुसलमानोंके बीच इस मनमुटावके जमाने में इस अपीलको कई नामोंके साथ निकालना उचित नहीं समझा गया। मगर हमें उम्मीद है कि वे सभी लोग जो स्वर्गीय आत्माकी स्मृतिपर श्रद्धा रखते हैं, और इस स्मारकके साथ नेशनल मुस्लिम यूनिवर्सिटीको जोड़ देनेका खयाल पसन्द करते हैं, इस आन्दोलन में उसी प्रकार सहायता देंगे जैसे कि वे भी अपील करनेवालोंमें शामिल हों।

मेरी विनम्र सम्मतिमें एकतामें विश्वास करनेवाले हिन्दू-मुसलमानोंका यह कर्त्तव्य है कि वे हकीम साहबकी यादगारको इस प्रस्तावित ठोस रूपमें स्थायी बनायें। जामिया की नींव पक्की बनाना उनका कर्त्तव्य है क्योंकि जामिया उस जामानेकी उपज है जब कि यह समझा जाता था कि दोनों जातियाँ हमेशा के लिए एक हो गई हैं। और अगर असहयोगी राष्ट्रीय विद्यालय एकताका समर्थन न करें, एकता कराने की कोशिश न करें, एकता पक्की न करें तो फिर कोई और नहीं कर सकता। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि एकताके सभी समर्थक इस कोष में खूब उदारता से दान देंगे।

आज केन्द्रीय विद्यालय में २०० विद्यार्थी और उसकी नगर-शाखामें ७४ विद्यार्थी हैं। इनके अलावा, दो रात्रि-पाठशालाएँ हैं, जिनमें लगभग २०० विद्यार्थी पढ़ते हैं। जामिया में २३ कार्यकर्त्ता हैं, जिसमें सबसे अधिक वेतन पानेवालेको २६५ रुपये और सबसे कम पानेवालेको ३५ रुपया महीना मिलते हैं। प्रिंसिपलको हमेशा यही चिन्ता रहती है कि ऐसे स्वयंसेवकोंको आकृष्ट किया जाये जो अपनी जरूरत-भरके लायक ही वेतन लें। हर महीने २,३०० रुपये वेतनके रूपमें देने पड़ते हैं। मकानका किराया ४२५ रुपये माहवार है। कुल माहवारी खर्च ४,८०० रुपयेका है। नियमित माहवारी आमदनी २,७०० रुपयोंकी है जिसमें भोजनालयके १,३०० रुपये भी शामिल हैं। यों २,१०० रुपये महीनेकी कमी पड़ती है। जबतक हकीम साहब जिन्दा थे, किसी-न-किसी तरह यह खर्च चल जाता था। जबतक शिक्षक लोग अपने लिए ऐसा नाम और प्रतिष्ठा नहीं पैदा कर लेते, जिससे उन्हें सहायता मिलने लगे तबतक सर्वसाधारणको यह कमी आप ही पूरी करनी पड़ेगी। और जबतक जामियाकी इमारत नहीं बन जाती, यह स्मारक स्थायी नहीं माना जा सकता। इसलिए दानकर्त्ता सहायताकी रकमका निश्चय करते समय, जरूरतका भी खयाल रखें।

डा॰ अन्सारी लिखते हैं कि सेन्ट्रल बैंकने बराय मेहरबानी अजमल जामिया-कोषके चन्दोंकी रकमें स्वीकार करना और सभी 'चेकों' और 'ड्राफ्टों' का बिना दस्तूरी