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३६०. पत्र : एस॰ गणेशनको

आश्रम
साबरमती
१७ जनवरी, १९२८

प्रिय गणेशन,

मुझे तुम्हारा तार मिला था। मुझे तारसे जवाब नहीं देना चाहिए। 'हिस्ट्री ऑफ सत्याग्रह'[१] का सारा अनुवाद अब तैयार है। तुमने मुझे छपाई शुरू कर सकनेकी तारीख बताई है, और मैं चाहता हूँ कि लिखो कि किस तारीखको उसे समाप्त कर सकते हो। इसलिए कृपया मुझे वह निश्चित तारीख बताओ जब तुम उसे बिक्रीके लिए तैयार कर सकते हो। वह पूरी तरह खद्दरकी जिल्दमें होनी चाहिए; या फिर कागजकी जिल्द हो। अगर तुम समय और अर्थ-साधन, दोनों दृष्टियोंसे इस कामको न सँभाल सको तो हाथमें मत लो। मैं इस इतिहासको जल्दी प्रकाशित देखना चाहता हूँ; क्योंकि उसके बिना मुझे आत्मकथावाले अध्याय[२] लिखने में अड़चन होती है।

जहाँतक 'सेल्फ रेस्ट्रेन्ट वर्सेस सेल्फ इनडलजेंस'[३] का सवाल है, कागज खरीदा जा चुका है और रिसेटिंग आरम्भ हो चुकी है।

इस पत्रका उत्तर शीघ्र और सुनिश्चित रूपसे दो। मैं तुम्हें बता दूँ स्वामी आनन्दकी दृष्टिमें तुमने जो प्रतिष्ठा खोई है उसे अभी तुमनेफिरसे प्राप्त नहीं किया है, और यह दुखकी बात है। क्योंकि जबतक तुम उसे प्राप्त नहीं कर लेते तबतक मेरे लिए तुम्हारी उतनी सहायता करना कठिन है जितनी मैं करना चाहता हूँ। तुम श्री ग्रेग द्वारा हाथकताईपर लिखा गया निबन्ध छाप रहे हो। कृपया मुझे बताओ कि वह कबतक प्रकाशित हो जायेगा।

हृदयसे तुम्हारा,

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३०४२) की फोटो-नकलसे।
  1. दक्षिण अफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास; देखिए खण्ड २९।
  2. देखिए खण्ड ३९।
  3. इसमें आत्म-संयम, ब्रह्मचर्य, सन्तति-नियमन आदि विषयोंपर लिखे गये गांधीजीके लेखों तथा यंग इंडिया में "अनीतिको राहपर" शीर्षकसे प्रकाशित लेखमालाका संग्रह था। देखिए खण्ड ३१।