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पत्र : जवाहरलाल नेहरूको

बनायें। जहाँ भी रहें विद्यापीठको सदा याद रखें। भविष्य में यह क्या रूप लेगा, सो आप कुछ दिनोंमें जान लेंगे। किन्तु धीरज रखना चाहिए। मैं आपसे इतना तो कह ही देना चाहता हूँ कि जबतक हममें से कुछ लोग भी जीवित रहेंगे तबतक विद्यापीठ बन्द नहीं होगा। इस विद्यापीठकी खातिर यदि मुझे अपनी हस्तीको मिटा देना पड़े, मरना-खपना पड़े तो मैं उसके लिए तैयार हूँ। आप यह विश्वास रखें कि अगर आप विद्यापीठके तेजको सहन कर सकेंगे तो वह सदा आपका सहारा बना रहेगा। यदि आप उसके तेजको सहन न कर सकें तो मुझे दोष न दें, अध्यापकोंको दोष न दें; विधाताको दोष दें। हालाँकि हम अहिंसावादी हैं फिर भी मैं आपसे कहता हूँ कि यदि हम लोग अपने वचनका पालन न कर सकें तो आपको हमें कत्ल करनेका अधिकार है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २२-१-१९२८

३५७. सन्देश : द्वितीय स्नातक सम्मेलनपर[१]

१६ जनवरी, १९२८

खेद है कि मैं स्नातक संघके अधिवेशन में भाग नहीं ले सकूँगा। मुझे आशा है कि सदस्यगण स्नातक संघको सेवाका उत्कृष्ट साधन बनाकर संघ और स्वयंको गौरवान्वित करेंगे तथा राष्ट्रीय यज्ञमें उदारतापूर्वक अपनी आहुति देंगे।

मोहनदास गांधी

[गुजरातीसे]
साबरमती, खण्ड ६, अंक ४

३५८. पत्र : जवाहरलाल नेहरूको[२]

आश्रम
साबरमती
१७ जनवरी, १९२८

प्रिय जवाहरलाल,

समय बचाने और अपने दुखते हुए कंधेको आराम देनेके लिए मुझे पत्र बोलकर ही लिखवाना पड़ेगा। रविवारको मैंने तुम्हें फेनर ब्रॉकवेके बारेमें लिखा था।[३] आशा है, तुम्हें वह पत्र ठीक समयपर मिल गया होगा।

  1. गुजरात विद्यापीठके स्नातक सम्मेलनपर।
  2. जवाहरलाल नेहरूके दिनांक ११-१-१९२८ के पत्रके उत्तरमें, देखिए परिशिष्ट १०।
  3. देखिए "पत्र : जवाहरलाल नेहरूको", १५-१-१९२८।