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३५५. पत्र : सतीशचन्द्र दासगुप्तको

सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
१५ जनवरी, १९२८

प्रिय सतीश बाबू,

मुझे अखिल बाबूकी अच्छी तरह याद है। उनकी पत्नीकी दुर्घटनाके बारेमें मैं उन्हें लिख रहा हूँ। आपने जिस घटनाका उल्लेख किया है उसकी मुझे याद है। मैंने उन्हें हमेशा पसन्द किया है। हालांकि मैंने मनमोहन बाबूका खण्डन स्वीकार कर लिया है, लेकिन उसके कारण अखिल बाबूके प्रति खराब धारणा नहीं बनाई है। अब आप मनमोहन बाबूके बारेमें जो कुछ कहते हैं उससे निश्चय ही मुझे दुःख हुआ है।

डा॰ रायने मुझे दो पत्र भेजे हैं। पहले पत्र में उन्होंने खादीका सराहना पूर्ण शब्दोंमें उल्लेख किया है और दूसरेमें उन्होंने उसमें दृढ़ विश्वास घोषित करते हुए लिखा है कि वह जमनालालजीके आनेकी उत्सुकतासे प्रतीक्षा कर रहे हैं। अगर सम्भव हुआ तो मैं आपको इन पत्रोंकी प्रतियाँ भेज दूँगा।

मुझे खुशी है कि हेमप्रभादेवी अब प्रफुल्लित रहने लगी हैं। यह अजीब बात है कि तारिणी अभी भी अस्वस्थ है। क्या वह अपना अनुसन्धान कार्य किसी ज्यादा अच्छे जलवायुवाले स्थान में नहीं कर सकता?

सप्रेम,

बापू

अंग्रेजी (जी॰ एन॰ १५८२) की फोटो-नकलसे।

३५६. भाषण : गुजरात विद्यापीठके दीक्षान्त समारोहमें

१५ जनवरी, १९२८

दीनबन्धु एन्ड्र्यूज[१] न केवल एक भले अंग्रेज हैं तथा उन्होंने इस देशके लिए न केवल अपना सर्वस्व निछावर किया है बल्कि वे एक कलाकार, कवि और अच्छे वक्ता भी हैं। जिन लोगोंने उनके भाषण सुने हैं और जिन्होंने उनके कामोंका अध्ययन किया है वे जानते हैं कि उनके सभी काम कलापूर्ण होते हैं। वे कवि हैं; क्योंकि वे यह जानते हैं कि भविष्य कैसा होगा और कैसा होना चाहिए। वे सुवक्ता हैं, इस कारण नहीं कि वे धाराप्रवाह भाषण दे सकते हैं अथवा उनका उच्चारण और भाषा उच्च कोटिकी है बल्कि उनकी ये सारी खूबियाँ तो उनके हृदयसे उठकर आती हैं। आप उनका भाषण पढ़ें।

  1. सी॰ एफ॰ एन्ड्र्यूजने दीक्षान्त भाषण दिया था।