३५४. पत्र : जवाहरलाल नेहरूको[१]
सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
१५ जनवरी, १९२८
मुझे तुम्हारा पत्र मिला। तुम जो कुछ भी लिखते उसकी तुलनामें मुझे यह बहुत पसन्द आया है। कारण, इसमें तुमने पूर्ण स्पष्टवादितासे काम लिया है। मुझे खुशी है कि मैंने वह लेख लिखा; भले ही उससे इतना ही हुआ कि जो बात तुम इतने वर्षोंसे अपने मनमें रख रहे थे वह तुमने खोलकर कह दी है। लेकिन इसकी चर्चा बादमें।
मैं यह पत्र बोलकर लिखवा रहा हूँ, केवल तुम्हें यह सूचित करनेके लिए कि बेचारे ब्रॉकवेकी दशा खराब है। मुझे पता चला है कि उन्हें एक कहीं अधिक गम्भीर ऑपरेशन कराना होगा और शायद उन्हें अगले कई महीनों तक भारतमें ही रहना पड़ेगा। मुझे यह भी पता चला है कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीकी तरफसे पिताजीके[२] साथ हुई इस शर्तपर वह भारत आये हैं कि उनका आने-जानेका खर्च कांग्रेस देगी। यदि ऐसा हो तो हमें उनके अस्पतालका खर्च भी देना चाहिए, और किसी भी हालत में यह देखते हुए कि वह कांग्रेस में भाग लेने आ रहे थे, जरूर ही देना चाहिए। मेरा खयाल है कि शीघ्र ही उनपर अस्पतालका बकाया चढ़ने लगेगा। तुम कृपया पूछताछ करके आवश्यक कार्रवाई करो, और जरूरी हो तो तारसे सूचना दो।
मैं समझता हूँ कि मद्रासकी समिति पहले ही ४०० रुपये दे चुकी है। अस्पतालका खर्च ही प्रतिदिन १२ रुपये बताते हैं। मैं श्रीनिवास अय्यंगारको भी लिख रहा हूँ।
हृदयसे तुम्हारा,
बापू
- [अंग्रेजीसे]
- गांधी-नेहरू पेपर्स, १९२८।
- सौजन्य : नेहरू स्मारक संग्रहालय और पुस्तकालय