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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आपके पास पहुँच जाती है। हम एक पग और आगे बढ़ें, तब हम समझ सकेंगे कि आध्यात्मिक अनुभवोंका असर अपने आप ही होने लगता है। इसलिए स्वच्छता आदि नियम सिखलानेका दृष्टान्त यहाँ काम नहीं देगा। अगर हमारे पास कोई आध्यात्मिक सत्य हो तो वह अपने आप ही दूसरोंतक पहुँच जायेगा। आप आध्यात्मिक अनुभवोंके परमानन्दकी बात करते हैं और कहते हैं कि उसमें दूसरोंके साथ हिस्सा बँटाये बिना आप रह ही नहीं सकते। खैर, अगर यह सच्चा आनन्द है, परमानन्द है, तो वह अपने आप ही वाणीके बिना ही फैल जायेगा। आध्यात्मिक मामलोंमें हमें बस थोड़ा ही आगे बढ़कर प्रयत्न करना पड़ता है। परमात्माको अपना काम करने दीजिए। अगर हम बीचमें हस्तक्षेप करें तो उससे हानि भी हो सकती है। परमात्माका असर तो अपने-आप ही हुआ करता है। पापका नहीं होता, क्योंकि वह तो एक नकारात्मक शक्ति है। उसे तो आगे बढ़नेके लिए पहले पुण्यका आवरण ओढ़ना जरूरी है।

क्या खुद ईसाने लोगोंको सीख नहीं दी थी? उपदेश नहीं दिया था?

यहाँ बड़ी सावधानी बरतनी चाहिए। आप चाहते हैं कि मैं ईसाके जीवनकी अपनी व्याख्या आपको बताऊँ। खैर, मैं इतना ही कहूँगा कि 'बाइबिल' में लिखे हरएक शब्दको मैं ऐतिहासिक सत्य नहीं मानता। फिर यह भी याद रखना चाहिए कि ईसा अपने देश बन्धुओंके बीच काम कर रहे थे। उन्होंने कहा था कि वे खण्डन करनेके लिए नहीं बल्कि सुसम्पूर्ण बनानेके लिए आये थे। मैं गिरि-शिखरपर दिये गये ईसाके उपदेश और पॉलके पत्रोंमें बहुत अन्तर मानता हूँ। पॉलके पत्र तो ईसाकी शिक्षाओं में ऊपरसे मिलाये गये हैं—वे पॉलकी कृति हैं, ईसाकी नहीं।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १९-१-१९२८

३५३. पत्र : प्रभाशंकर पट्टणीको

रविवार [१५ जनवरी, १९२८ या उससे पूर्व][१]

सुज्ञ भाईश्री,

आपका पत्र मिला। मैं वहाँ २४ या २५ तारीखको पहुँचूँगा। मगर शायद वे मुझे सीधे वरतेज ले जानेवाले हैं। क्या आप पोरबन्दर नहीं आ रहे हैं? आपके स्वास्थ्य के सुधरनेका क्या कोई उपाय नहीं है? मेरा ठीक है। इस मामलेमें भी अखबारोंपर भरोसा करना कठिन है।

मोहनदास के वन्देमातरम्

गुजराती (जी॰ एन॰ ५९०५) की फोटो-नकलसे।
  1. २३-२४ जनवरीको अछूतों के लिए एक मंदिरके शिलान्यासके सम्बन्धमें गांधीजी वरतेजमें थे।