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पत्र : प्रागजी देसाईको

पाने योग्य एक आदर्श स्थान बनाना चाहते हैं तो मैं अपेक्षा करूंगा कि आप उसे न केवल सफाई और स्वच्छतामें आदर्श ही बना देंगे बल्कि आपके यहाँ अच्छे मवेशीखाने होंगे, जहाँ सभी प्रकारके पशु रखे जायेंगे, और यह भी अपेक्षा करूंगा कि आपके यहाँ एक आदर्श डेरी भी होगी जो आपको और आसपास के गरीब लोगोंको सस्ते भावपर अच्छा और शुद्ध दूध वितरित करेगी। मैं यह भी अपेक्षा करूंगा कि आप यहाँ चमड़ा कमानेके कारखाने बनायेंगे और वहाँ मरे हुए पशुओंका चमड़ा प्राप्त करके उससे अमीरों और गरीबोंके लिए जूते बनाये जायेंगे। इसी प्रकार आपकी दानशीलताका लाभ मुक्त रूपसे उन तथाकथित अस्पृश्योंको भी प्राप्त होना चाहिए जिन्हें आपने अभीतक अपने पैरों तले रौंदा है।

मैं और भी सुझाव दे सकता हूँ, लेकिन मुझे आशा है कि आपको विचार करने- के लिए मैंने पर्याप्त सामग्री दे दी है। आपके सच्चे मित्रके नाते मैं आपसे कहूँगा कि जिन महत्त्वपूर्ण बातोंपर मैंने आपसे चर्चा की है उन्हें आप अपने मनसे निकाल न दें, बल्कि उनपर विचार करें, और मुझे यह देखकर खुशी होगी कि आपमें से कमसे- कम कुछ लोगोंने मेरे सन्देशको समझा और उसकी कद्र की है। मैं भारतके अमीरों और गरीबोंके बीचकी खाई पाटनेको बहुत उत्सुक हूँ। जबतक इन दोनोंके बीच जीवन्त सम्बन्ध नहीं स्थापित हो जाता तबतक मुझे इस देशके लिए स्थायी सुखका कोई रास्ता नजर नहीं आता।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, २४-९-१९२७

१८. पत्र : प्रागजी देसाईको

भाद्रपद बदी १३ [२३ सितम्बर, १९२७ ]

[१]

भाईश्री प्रागजी,

तुम्हारा पत्र मिला। मैंने तुम दोनोंके बारेमें शास्त्रीजीको लिखा है।[२] वे प्रयत्न तो कर ही रहे हैं। वे जो करें और कहें उससे सन्तोष मानना। मैंने उन्हें एक दलील सुझायी है जो शायद उपयोगी सिद्ध हो । दलील यह है कि जो व्यक्ति शैक्षणिक योग्यताके आधारपर प्रवेश चाहता है उसके लिए मुद्दतकी रोक नहीं लगनी चाहिए। जो भी करो, निवासका अधिकार पानेके लिए ऐसा कुछ मत करना जो शरमाने-जैसा हो और न कोई अपमानजनक शर्त ही स्वीकार करना। अपने सम्मानकी रक्षा करते हुए जो पा सको उसीसे सन्तोष करना। नेटालमें रहनेका अधिकार तो तुम दोनोंको मिल ही गया मालूम होता है। अतः अब तुम्हें ज्यादा कठिनाई नहीं होनी चाहिए।

  1. १. इस पत्रमें प्रागजीके मामलेका उल्लेख है। उसीके आधारपर वर्षका निश्चय किया गया है।
  2. २. देखिए "पत्र : बी० एस० श्रीनिवास शास्त्रीको ५, २२-९-१९२७ ।