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बन्धुत्व विषयक चर्चा

बदले में ही उनकी प्रार्थनामें शामिल हो जाऊँगा। अंग्रेजोंके आने से पहले हम 'आदिम जातियों', 'प्रकृति-पूजक जातियों' इत्यादि वर्गोंमें लोगोंको विभाजित नहीं करते थे। यह भेद तो हमें अंग्रेज शासकोंने सिखलाया है। यदि मुझमें सेवा करनेकी इच्छा है तो वही लोगोंके साथ मेरा सीधा सम्बन्ध स्थापित कर देगी। धर्म-परिवर्तन और जन-सेवा दोनोंकी पटरी ठीक-ठीक नहीं बैठती।

दूसरे दिन खूब सबरे ये मित्र गांधीजी से खानगी बातचीत करने बैठे। इस बार भी कईने वही सवाल पूछा :

"तब क्या आप चाहते हैं कि संघका यह नियम बन जाये कि जो लोग दूसरोंको अपने धर्ममें लानेके लिए प्रचार करना चाहते हैं, वे इसके सदस्य नहीं बन सकते?"

जाती तौरपर तो मैं यही ठीक समझता हूँ। मुझे इस आशयका एक प्रस्ताव रखना चाहिए था, क्योंकि मैं इसे बन्धुत्वका एक सर्वसंगत निष्कर्ष मानता हूँ। भिन्न-भिन्न धर्मावलम्बियोंके पारस्परिक सम्पर्क और सम्बन्धके लिए ऐसा नियम आवश्यक है।

दूसरे मित्रने पूछा, "क्या धर्मान्तरित करनेकी इच्छा परमात्माकी प्रेरणा नहीं है?

मुझे इसमें शंका है। कुछ हिन्दुओंका विश्वास है कि सभी इच्छाएँ परमात्माकी ही प्रेरणा होती हैं। परन्तु परमात्माने हमें भले-बुरेको समझनेकी शक्ति, विवेक भी तो दिया है। भगवान तो कहेंगे कि मैंने तुम्हें बहुत-सी प्राकृतिक प्रेरणाएँ दी हैं, जिसमें प्रलोभनका सामना करनेकी तुम्हारी शक्तिकी परीक्षा हो सके।

एक बहनने पूछा, "मगर आप एक आर्थिक व्यवस्था बनानेका उपदेश देनमें तो विश्वास करते ही हैं?"

हाँ, उसी प्रकार जिस प्रकार मैं स्वास्थ्यके नियमोंको बतलाना अच्छा समझता हूँ।

तब यही नियम धार्मिक मामलोंके बारेमें भी क्यों न काममें लाया जाये?

यह सवाल ठीक है। मगर आप यह न भूलें कि हमने यह चर्चा यही मूल सिद्धान्त मानकर शुरू की है कि सभी धर्म सच्चे हैं। अगर भिन्न-भिन्न समाजोंके लिए भिन्न-भिन्न परन्तु सच्चे स्वास्थ्यके नियम प्रचलित हों तो कुछको सही और कुछको गलत कहनेमें मुझे संकोच तो होना ही चाहिए। मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि लोग जबतक दूसरोंके धार्मिक विचारोंको सहन करने को तैयार नहीं होते, किसी भी किस्मका अन्तर्राष्ट्रीय बन्धुत्व स्थापित हो ही नहीं सकता।

फिर आध्यात्मिक विषयोंपर सांसारिक या भौतिक दृष्टान्तोंको एक सीमातक ही घटित किया जा सकता है। जब आप बाह्य प्रकृतिसे कोई दृष्टान्त चुनते हैं, तब उसका उपयोग भी एक खास हदतक ही किया जा सकता है। मगर मैं प्रकृतिसे सम्बन्धित एक दृष्टान्त लेकर ही अपनी बात समझानेकी कोशिश करूँगा। अगर मैं आपको गुलाबका एक फूल दूँ तो उसके लिए मुझे अपना हाथ हिलाना ही पड़ता है, मगर उसकी सुगन्ध देनेके लिए मुझे कुछ नहीं करना पड़ता, वह अपने आप ही

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