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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इस सम्बन्ध में मेरे विचारोंके कारण मुझसे ऐसी बातें छिपाने में कोई लाभ नहीं है। जब मुझे प्रकारान्तरसे ऐसी बातोंका पता चलता है तो उससे मुझे दुःख होता है। मेरे जैसे विचार रखनेवाले लोग भी विषयभोगको आसानीसे नहीं छोड़ पाते। यदि छोड़ पायें तो फिर विवाह ही क्यों हो? विवाहका मूल भोगेच्छा है; किन्तु ऋषियोंने उसे संयमका साधन बनानेका प्रयत्न किया। या यों कहा जा सकता है कि अमर्यादित सम्बन्धको विवाहके द्वारा मर्यादामें बाँध दिया है। किन्तु सदा भोगके प्रति मनुष्यका झुकाव होनेके कारण उसने विवाहको भी भोगका एक नया साधन बना लिया। किन्तु तुम्हारे जैसे दम्पतिसे मैं इसके सिवा कोई अन्य आशा रख ही नहीं सकता कि तुम सदा सावधान रहोगे और संयमसे रहनेका प्रयत्न करोगे। इससे तुम्हें विवाहके परिणामको मुझसे छिपानेकी जरूरत ही नहीं होगी।

आशा है अब सुशीला अच्छी होगी। गर्भस्रावके बाद यदि सही ढंगसे इलाज कराया जाए तो उसके बुरे परिणामसे काफी हदतक बचा जा सकता है। तुम्हें इतना अवश्य जान लेना चाहिए कि इसका समुचित उपचार कूने-स्नान है। यह स्नान लेनेसे गर्भस्रावकी बीमारी ठीक हो जाती है तथा भविष्यमें प्रसव-कालमें होनेवाला कष्ट भी हलका पड़ जाता है। सादी खुराक, नियमित निद्रा तथा उत्तेजित करनेवाली चीजोंसे दूर रहना चाहिए। मैं चाहता हूँ कि तुम दोनों कूने तथा जुस्टकी पुस्तकें पढ़ जाओ। डॉ॰ जॉन निकलसनकी पुस्तक भी पढ़ने लायक है।

लोग आश्रममें आने लगे हैं और दो दिनमें तो वह पूरा भर जाएगा। लगभग ३० व्यक्ति आनेवाले हैं। उनमें १२-१५ पश्चिमी देशोंके लोग भी हैं। रामदास आज पहुँच गया। रामी और मनु कल आ गए थे। देवदास अभी बम्बई में ही है और वहाँ अपनी हड्डीका इलाज करा रहा है।

मैं नहीं कह सकता कि 'गीताजी' के अध्याय तुम्हें क्यों नहीं मिले। मैंने तो अनुवाद पूरा कर दिया है। मैं महादेवसे कहूँगा।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (जी॰ एन॰ ४७२८) की फोटो-नकलसे।