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३४९. मुकुन्दनका प्रायश्चित्त

श्रीयुत चक्रवर्ती राजगोपालाचारीकी एक यह भी महत्वाकांक्षा जान पड़ती है। कि वे 'यंग इंडिया' के लिए हृदयद्रावक कहानियाँ लिखें। उनकी अन्य कहानियोंकी भाँति इस कहानी के पीछे भी एक नैतिक पाठ है। यह एक 'अस्पृश्य' की कहानी है।[१] काश इससे किसी 'स्पृश्य' का पत्थर-सा कलेजा पिघल जाये!

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १२-१-१९२८

३५०. मैसूर सरकारका खादी केन्द्र

मैसूर सरकारने खादी उत्पादनमें एक प्रयोग हाथमें लिया है, और कार्यकर्त्ताओं तथा कार्य योजनाके बारेमें अखिल भारतीय चरखा संघकी सहायताका लाभ उठाकर उसने बदनवाल नामक एक केन्द्रपर पूरी लगनके साथ काम शुरू कर दिया है। श्रीयुत राजगोपालाचारीको वहाँके एक कार्यकर्त्ताका एक पत्र प्राप्त हुआ है जिसमें से कार्यकी प्रगतिका निम्नलिखित दिलचस्प विवरण यहाँ दिया जा रहा है।[२] इससे पता चलता है कि ग्रामीण क्षेत्रोंमें, जहाँ एक पूरक धन्धेकी आवश्यकता तीव्रतासे अनुभव की जाती है, यदि सही तरीकेपर काम शुरू किया जाये तो खादी कितनी सरलतासे फैलती है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १२-१-१९२८

३५१. पत्र : मणिलाल व सुशीला गांधीको

[१५ जनवरी, १९२८ से पूर्व][३]

चि॰ मणिलाल व सुशीला,
तुम्हारे पत्र मिले

आज अकोलासे जो पत्र मिला है उससे ज्ञात हुआ कि सुशीलाको असमय-गर्भ स्राव हो गया है। मणिलालने इस बातकी सूचना न तो मुझे दी और न बा को। मुझे ऐसी बातोंके बारेमें लिखनेमें किसी तरह की शर्म या झिझक नहीं होनी चाहिए।

  1. यहाँ कहानी नहीं दी गई है।
  2. यहाँ नहीं दिया गया है।
  3. ऐसा लगता है कि यह पत्र आश्रम में होनेवाले अन्तर्राष्ट्रीय संघके अधिवेशनसे पहले लिखा गया होगा; देखिए अगला शीर्षक।