पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 35.pdf/५०१

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४७३
स्वतन्त्रता बनाम स्वराज्य

डंका पीटना है। मैंने देखा है कि जंजीरोंमें कसे हुए कैदी जेलरोंको गालियाँ देते हैं, और कोसते हैं जिससे जेलरोंका महज मनबहलाव ही होता है।

और फिर, क्या किसी अंग्रेज द्वारा की गई किसी ज्यादतीका बदला लेनेके लिए ही हमने स्वतन्त्रताको एकाएक अपना लक्ष्य बना लिया है? क्या कोई किसीको खुश करनेके लिए या उसकी करतूतोंका विरोध करनेके लिए ही अपना ध्येय निश्चित करता है? मेरा कहना है कि ध्येय तो एक ऐसी चीज है जिसकी घोषणा की जानी चाहिए और जिसकी प्राप्तिके लिए काम करते ही जाना चाहिए, बिना इसका खयाल किये कि दूसरे क्या कहते हैं या क्या धमकी देते हैं।

इसलिए हम यह भी समझ लें कि स्वतंत्रतासे हमारा क्या अभिप्राय है। इंग्लैंड, रूस, स्पेन, इटली, तुर्की, चिली, भूटान—सभीको स्वतन्त्रता प्राप्त है। हम इनमें से किसके जैसी स्वतन्त्रता चाहते हैं? यहाँ यह न कहा जाये कि मैं वही बात सिद्ध मान रहा हूँ जिसे सिद्ध करना है। क्योंकि अगर यह कहा जाये कि हमें भारतीय ढंगकी स्वतन्त्रताकी चाह है तो यह दिखलाया जा सकता है कि कोई दो भारतीय इस भारतीय ढंगकी स्वतन्त्रताकी एक तरहकी परिभाषा नहीं बतलायेंगे। बात दरअसल यह है कि हम अपना परम ध्येय जानते ही नहीं। और उस ध्येयका रूप हमारी परिभाषाओंसे नहीं, बल्कि स्वेच्छा या अनिच्छापूर्वक किये गये हमारे कामोंसे ही निश्चित होगा। अगर हममें अक्ल है तो हम वर्त्तमानको संभाल लेंगे, भविष्य अपनी फिक्र आप कर लेगा। परमात्माने हमारे कार्यक्षेत्र और हमारी दृष्टिकी मर्यादा बाँध दी है। इसलिए अगर हम आजका काम आज ही खतम कर लें तो यही बहुत होगा।

मेरा यह भी दावा है कि स्वराज्यके ध्येयसे सबको सर्वदा पूरा सन्तोष मिल सकता है। हम अंग्रेजी पढ़े-लिखे हिन्दुस्तानी अनजानेमें यह मान लेनेकी भयंकर भूल अकसर किया करते हैं कि अंग्रेजी बोलनेवाले मुट्ठी भर आदमी ही समूचा हिन्दुस्तान है। मैं हर किसीको चुनौती देता हूँ कि "इंडिपेंडेंस" के लिए वे एक ऐसा सर्वसामान्य भारतीय शब्द बतलायें जो जनता भी समझती हो। आखिर हमें अपने ध्येयके लिए कोई ऐसा स्वदेशी शब्द तो चाहिए जिसे तीस करोड़ लोग समझते हों। और ऐसा एक शब्द है—स्वराज्य, जिसका राष्ट्रके नामपर पहले-पहल प्रयोग श्री दादाभाई नौरोजीने[१] किया था। यह शब्द स्वतन्त्रतासे काफी कुछ अधिकका द्योतक है। यह एक जीवन्त शब्द है। हजारों भारतीयोंके आत्म-त्यागसे यह शब्द पवित्र बन गया है। यह एक ऐसा शब्द है जो अगर दूर-दूरतक, हिन्दुस्तान के कोने-कोने में प्रचलित नहीं हो चुका है तो कमसे कम इसी प्रकारके सभी दूसरे शब्दोंसे अधिक प्रचलित तो जरूर है। इसे हटाकर, बदले में कोई ऐसा विदेशी शब्द प्रचलित करना जिसके अर्थके बारेमें हमें शंका है, एक प्रकारका अनाचार होगा। यह स्वतन्त्रताका प्रस्ताव ही शायद इस बातका सबसे बड़ा और अन्तिम कारण बन गया है कि हम कांग्रेसकी कार्रवाई हिन्दुस्तानी और सिर्फ हिन्दुस्तानीमें ही चलायें। यदि सारी कार्रवाई

  1. दादाभाई नौरोजीने १९०६ को कलकत्ता कांग्रेसके अपने अध्यक्षीय भाषणमें 'स्वराज्य' शब्दका प्रयोग 'स्वशासन' के अर्थ में किया था।