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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं है। हमारे सामने जनकका प्रसिद्ध उदाहरण है। उनके पास अपार धन था, फिर भी वह पवित्रताके साक्षात् अवतार थे। इसलिए मैं जीवनकी व्यक्तिगत पवित्रता- पर जोर देता हूँ। वास्तवमें यही मनुष्योचित जीवनका सार है। मनुष्यका मनुष्यत्व इसीमें है कि वह अपनी पत्नीको छोड़कर अन्य प्रत्येक स्त्रीको उसकी आयुके मानसे बहन, माँ या बेटी समझे। इसलिए मैं चाहता हूँ कि मेरे चेट्टी भाई मनुष्यके लिए अपने प्रति जितनी सख्ती बरतना सम्भव है उतनी सख्ती बरतें और कड़ाईसे आत्म- निरीक्षण करें।

आपका दान भी बुद्धिमत्तापूर्ण होना चाहिए। मैंने सुना है कि आप मन्दिरोंके निर्माणपर खूब धन खर्च करते हैं। थोड़े-बहुत मन्दिर बनवाना तो अच्छी चीज है, लेकिन सम्भव है इस तरह जरूरतसे ज्यादा मन्दिर बन जायें। ऐसा सोचना एक भयंकर अन्धविश्वास है कि हमारे एक ऐसा भवन बनवा देनेसे जिसे मन्दिर कहा जाता है, भगवान उसमें निवास करने ही लगते हैं। मैं आपसे कहता हूँ कि मैं भारतमें ऐसे बहुतसे मन्दिरोंको जानता हूँ जहाँ उसी प्रकार ईश्वरका निवास नहीं है जैसे वेश्यालयमें नहीं होता। आप जैसे कुछ अच्छे मित्रोंने मुझे तथाकथित अस्पृश्योंके लिए मन्दिर बनवानेको कुछ धन दिया है। मैंने कह दिया है कि अगर मुझे मन्दिरके लिए कोई साधु-पुरुष नहीं मिलता और उसके प्रबन्धके लिए ईमानदार न्यासी नहीं मिलते तो मैं वह राशि मन्दिर बनवानेपर खर्च नहीं करूंगा।

मेरी समझमें इस समय खादीके इस कार्यको आगे बढ़ाने के लिए धन देना ही किसी भी भारतीयके लिए सर्वोत्तम दान देना है।

हमारे धनवान मित्र तथाकथित गरीबोंको भोजन करानेका बड़ा शौक रखते हैं। इस प्रकार भोजन देनेके लाभपर मैंने अकसर शंका व्यक्तकी है। 'भगवद्गीता' कहती है कि अच्छा दान वही है जो सुपात्रको दिया जाये।[१] इसलिए अन्धोंको, लँगड़े-लूलोंको और उन लोगोंको भोजन कराना ठीक होगा जो किसी-न-किसी कारणसे आजीविका कमानेके लिए काम नहीं कर सकते। लेकिन मैं साहसपूर्वक कहता हूँ कि यदि आप सब लोग आपसमें तय करके भारतके गाँवोंमें ५०,००० लोगोंको मुफ्त भोजन देनेके लिए एक निश्चित धनराशि अलग नियत कर दें तो यह एक बहुत बड़ा पाप होगा। जिस आदमीके हाथ-पाँव ठीक हैं और जिसके सामने करनेको कुछ काम है, वह मनुष्य मुफ्त भोजन करानेके योग्य नहीं है। भारतकी सबसे बड़ी जरूरत है क्षुधात ग्रामवासियोंके लिए उनके घरोंमें काम मुहैया करनेकी । और मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि आप खादीकी प्रगतिके लिए जो एक रुपया भी देते हैं उसका अर्थ है १६ स्त्रियोंका एक जूनका भोजन जिसे कि उन्होंने मेहनत करके कमाया है।

इसी प्रकार भारतमें मवेशियोंका जैसा पापपूर्ण ह्रास हो रहा है, उसके लिए दिया जानेवाला दान भी उतना ही बड़ा दान है। जो व्यक्ति एक अच्छी गोशाला और एक चमड़ा कमानेका कारखाना चलाता है वह कई सौ मवेशियोंकी रक्षा करता है। अत: यदि आप चेट्टिनाडको अपने रहने और मेरे जैसे हर अभ्यागतके लिए थोड़ा आराम

  1. १. १७, २० ॥