पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 35.pdf/४९८

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४७०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करेंगे। गांधीजी सहमत हो गये, लेकिन बढ़ईके काम शुरू करने के कुछ देर बाद ही उन्हें लगा कि उन्होंने ठीक काम नहीं किया है।

अब हम लोगोंको, जिन्होंने गरीबीका व्रत लिया है, ऐसा नहीं करना चाहिए। मुझे पहले ही सूझ जाना चाहिए था कि दफ्तीका या कपड़ेका एक टुकड़ा भी वही काम कर सकता था जो यह झिलमिली करेगी, जिसके ऊपर दो-एक रुपये खर्च आयेंगे और बढ़ईका तीन घंटेका समय लगेगा। दफ्ती या कपड़े के टुकड़ेपर कुछ खर्च नहीं होता, और दो कीलोंकी सहायतासे उसे कोई भी वहाँ जड़ दे सकता था। ऐसी ही मामूली छोटी-छोटी चीजोंमें हमारे सिद्धान्तोंकी परीक्षा होती है। स्वर्गका साम्राज्य उनके लिए है जो भावनासे गरीब हैं। इसलिए हमें हर कदमपर अपनी आवश्यकताओं और इच्छाओंको गरीबोंकी तरह कम करना तथा सचमुच भावनासे गरीब होना सीखना चाहिए।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १२-१-१९२८

३४४. भाषण : विनयशीलतापर[१]

साबरमती
[१२ जनवरी, १९२८ से पूर्व]

मुझे गीतके ठीक शब्द इस समय याद नहीं हैं, लेकिन गीतके सार-तत्वको कोई नहीं भूल सकता। न केवल इस गानेका संगीत ही बल्कि इसका जो भाव है वह आज सारा दिन मेरे मनमें घूमता रहा है। आप प्रार्थनामें संगीत सुनने अथवा किसी आदमीकी आवाजकी सराहना करनेके लिए नहीं आते, बल्कि आप जो कुछ सुनते हैं, उसमें से कुछ ऐसी चीज अपने साथ ले जानेके लिए आते हैं जो सारा दिन आपके सभी कार्यों में आपका मार्गदर्शन करे, अनुप्रेरित करे। अगर हम ऐसा नहीं करते तो हमारी सभी प्रार्थनाएँ मजीरा और झाँझ बजाने जैसी हो जायेंगी। आजका गीत कितना उत्कृष्ट था! कबीरने बोलचालकी प्रभावशाली भाषामें विनयशीलोंकी प्रिय वस्तुओंका वर्णन किया है। आत्म-प्रशंसा करनेवाला व्यक्ति नहीं, अपनेको विनयशील बनानेवाला व्यक्ति ही ईश्वरके दर्शन कर पायेगा, ऐसा कबीर कहते हैं। हमें चींटीके समान विनयी बनना है, हाथीके समान दर्पयुक्त नहीं।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया १२-१-१९२८
  1. यह महादेव देसाईं द्वारा दिये गये प्रार्थना सभा के विवरण में से लिया गया है।