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३४२. पत्र : सतीशचन्द्र दासगुप्तको

११ जनवरी, १९२८

प्रिय सतीश बाबू,

आपका पत्र मिला। अगर मौलाना आपको और अधिक ग्राहक दिला सकें तो यह काफी होगा।

सप्रेम,

बापू

श्रीयुत सतीश बाबू
खादी प्रतिष्ठान
कलकत्ता
अंग्रेजी (जी॰ एन॰ १५८१) की फोटो-नकलसे।

३४३. भाषण : प्रार्थना सभा, साबरमतीमें[१]

[१२ जनवरी, १९२८ से पूर्व]

आज मुझे आपके सामने एक भूलका दृष्टान्त देना है जिसमें हममें से तीन व्यक्ति बराबरके भागीदार हैं। या शायद मेरा भाग सबसे ज्यादा है, क्योंकि आश्रमके प्रधानके नाते मुझसे आपमें से किसी भी अन्य व्यक्तिकी अपेक्षा ज्यादा सतर्क रहनेकी अपेक्षाकी जाती है।

हममें से बहुत लोग कल्पना भी नहीं कर सके कि यह [भूल] क्या होगी। लेकिन उन्होंने उसे बड़े सजीव ढंगसे, और जैसा कि अपनी गलतियों को बतानेका उनका तरीका है, बड़ी हो तफसील के साथ बताया। जिन लोगोंने आश्रममें गांधीजीका कमरा देखा है उन्हें याद होगा कि नदीकी तरफवाली दीवार और छतके बीचमें एक जालीदार गवाक्ष है। इसका उद्देश्य तो कमरेको हवादार रखना है, लेकिन इससे सूरजकी किरणें भी सीधी गांधीजीके मुँहपर पड़ती हैं। अतः उन्होंने हममें से एकसे वहाँ कोई चीज आड़की तरह लगाने को कहा, इन मित्रने एक दूसरे व्यक्तिसे कहा, और वह तुरन्त लकड़ीकी तख्ती लिए एक बढ़ईको बुला लाये। स्वभावतः उसने सोचा कि आड़की अपेक्षा एक झिलमिली ज्यादा अच्छी रहेगी, और पूछा कि क्या गांधीजी उसे पसन्द

  1. महादेव देसाई लिखित "द वीक" (यह सप्ताह) लेखसे, जिसमें यह भाषण "द पुअर इन स्पिरिट" (भावनासे गरीब) शीर्षकके अन्तर्गत दिया गया है।