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पत्र : वी॰ एस॰ श्रीनिवास शास्त्रीको

अतिरिक्त तुम्हें इंजेक्शनसे लाभ हुआ है, अतः यदि डाक्टर फिरसे वह इंजेक्शन लेनेकी सलाह दे तो बेशक ले लेना। सिर-दर्द मिट्टीसे अवश्य चला जाना चाहिए। इसके लिए भी पेट तो साफ होना ही चाहिए।

प्रबोध तो बहुत मजेदार बालक लगता है। उससे हमें जो आशाएँ हैं, भगवान उन्हें पूर्ण करे।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (एस॰ एन॰ १२१४३) की फोटोयानकलसे।

३४०. पत्र : वी॰ एस॰ श्रीनिवास शास्त्रीको[१]

साबरमती
११ जनवरी, १९२८

प्रिय भाई,

आपका मधुर पत्र मिला। इसने मुझे तिरुपुरके उस हेडमास्टरकी याद दिला दी, जो आपका शिष्य रह चुका है। उसने मुझे बताया था कि आप संस्कृतके भी वैसे ही विद्वान हैं जैसे कि अंग्रेजीके। मुझे यह पता नहीं था। मैंने वाल्मीकि [की रामायण] का अनुवाद ही पढ़ा है और वह भी सरसरी तौरसे ही। मैं तो तुलसीदासकी दुहाई देता हूँ। लेकिन आप जो कुछ कहते हैं उसे स्वीकार करते हुए भी मैं कहता हूँ कि रामकी इच्छाके विपरीत सीता वनको गईं; और ऐसा करके उन्होंने सामान्यसे भी बढ़कर उत्कृष्ट आचरण किया। इसी प्रकार रामने दशरथके वचनका पालन करके अत्यन्त उत्कृष्ट कार्य किया। लेकिन मैं यह बहस व्यर्थ ही कर रहा हूँ, क्योंकि राम और सीता हमारी जिस श्रद्धाके पात्र हैं, उसे हम दोनों स्वीकार करते हैं।

मैं आपकी गतिविधियोंपर नजर रखे हुए हूँ और सर मुहम्मद हबीबुल्लाको[२] भेजे गये आपके पत्रोंकी प्रतियोंको बहुमूल्य मानता हूँ।

  1. नीचे उस पत्रका उद्धरण दिया जा रहा है जो शास्त्रीने टी॰ एन॰ जगदीशन् को १९४० में लिखा था : "रामायण के प्रश्नपर गांधीका मुझे लिखा गया पत्र वास्तव में उनकी सर्वोत्तम शैलीमें है। मैं उस समय दक्षिण आफ्रिकामें था। त्रावणकोर राज्यमें महिलाओंकी एक सभामें बोलते हुए उन्होंने बताया था कि सीताने वनमें रामका अनुगमन करके अपने पतिकी अवज्ञा की थी, और यह भी कहा था कि पर्याप्त कारण होनेपर पतिको अवहेलना की जा सकती है। वाल्मीकिको समझनेकी इस स्पष्ट भूलपर आपत्ति करते हुए मैंने लिखा।. . ."
  2. वाइसरायकी कार्यकारिणी परिषदके सदस्य; नवम्बर, १९२६ में दक्षिण आफ्रिका जानेवाले भारतीय प्रतिनिधि मण्डलके नेता; देखिए खण्ड ३३।