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३३३. मिट्टीकी महिमा

मैंने अपनी आरोग्य विषयक पुस्तकमें[१] रोगोंके उपचार में मिट्टीके उपयोगके सम्बन्धमें विस्तारपूर्वक लिखा है। उक्त पुस्तक पढ़कर परीक्षणके तौरपर मिट्टीका प्रयोग करनेवाले श्री विट्ठलदास पुरुषोत्तम लिखते हैं :[२]

इसपर मैंने उनसे अनुरोध किया कि वे अपने निजी अनुभव लिख भेजें। जिसके उत्तरमें उन्होंने निम्न पत्र लिखा है :[३]

इन दोनों पत्रोंमें दी गई जानकारीका उपयोग तरह-तरह के दर्दोंपर बेफिक्री से किया जा सकता है। मेरी रायमें तो जहाँ जख्म हो गया हो अथवा चमड़ी छिल गई हो वहाँ खुली मिट्टी रखी ही नहीं जानी चाहिए। मिट्टीकी पट्टीसे जिन्हें लाभ न पहुँचे वे कोरी मिट्टीका प्रयोग कर देखें। फिलहाल तो मैं सामान्य रोगोंमें मिट्टीका ही प्रयोग करता हूँ और उसका परिणाम अच्छा ही निकलता है। यह इलाज इतना सहज, सस्ता और सादा है कि एक हदतक सभी उसे आजमा सकते हैं। यह सही है कि खाली पेटपर ही मिट्टीकी पट्टी रखनेका प्रयोग किया जाता है। यह बात याद रखनी चाहिए कि मिट्टी हमेशा अच्छी जगहसे ही ली जाये। सिरके दर्द और बुखार में बरफका उपयोग किया जाता है। ऐसी स्थितिमें भी बरफकी अपेक्षा मिट्टी सामान्यतः अधिक लाभ पहुँचाती है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ८-१-१९२८

३३४. पत्र : कनिकाके राजाको

सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
८ जनवरी, १९२८

प्रिय मित्र,

मुझे इस बातका दुख है कि उत्कलके अपने हालके दौरेमें मैं आपके राज्यमें नहीं आ सका और स्वयं इस बातको नहीं देख सका कि रैयतपर अत्याचार किये जानेके जो आरोप मुझे बताये गये थे उनमें कुछ सचाई थी या नहीं। मेरे दौरेमें ये आरोप बहुत से लोगों द्वारा जोरदार शब्दोंमें कई बार दोहराये गये। लेकिन एक बार फिर

  1. देखिए आरोग्यके सम्बन्धमें सामान्य ज्ञान, खण्ड ११ तथा १२।
  2. यहाँ नहीं दिया गया है। पत्रलेखकने अपना अनुभव लिखा था कि मिट्टीका प्रयोग अपेंडिसाइटिस जैसे दर्द में भी बहुत कारगर सिद्ध हुआ है।
  3. यहाँ नहीं दिया गया है।