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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ऐसा कोई नहीं जन्मा जो एक गुणवाला ही रह गया हो। मनुष्य अतिशय सत्व गुणी हो तो भी उसमें तम और रजोगुणका कुछ-न-कुछ अंश आ ही जाता है। पानीका दृष्टान्त मेरे मन में आता है। पानी बरफके रूपमें पत्थरकी तरह अचल पड़ा रहता है किन्तु गरम होकर भाफ बन जाता है और आकाशमें उड़ने लगता है। बरफके रूपमें तो वह ऊँचे उठनेकी शक्ति ही गँवा बैठता है और भाफ बनकर वह निरन्तर ऊपरकी ओर उड़ता चला जाता है। पानीकी अधिकतम शक्ति तो माफके रूपमें ही प्रकट होती है। और अन्तमें भाफ बादल के रूपमें परिवर्तित होकर जगतका कल्याण करती है। किन्तु यदि भाफ बरफका तिरस्कार करे तो वह अचल पड़ी रहेगी। हालाँकि बरफके भी उपयोग हैं। बरफ नदीके रूपमें बहने लगती है। इससे प्रलय भी मच जाता है किन्तु इस सबसे हमारा कोई सम्बन्ध नहीं है। यह एक स्वयंसिद्ध बात है कि सूर्यकी गर्मी के बिना पानी भाफ नहीं बन सकता। इससे पता चलता है कि यह किसी दूसरेकी मददके बिना नहीं हो सकता। कहनेका तात्पर्य यह है कि भाफ मोक्षकी दशाकी सूचक है। वह मोक्षकी स्थिति में रहते हुए इस जगतका कल्याण करती है। इस प्रकार हमें इन दोनों अध्यायोंको समन्वित रूपसे समझ लेना चाहिए।

[गुजराती से]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।
सौजन्य : नारायण देसाई

३३२. गोरक्षा-सम्बन्धी लेख

गोरक्षा-सम्बन्धी लेखोंको प्रकाशित करनेमें सहायताके रूपमें धूलियासे नीचे दी हुई तफसीलके[१] अनुसार १५० रु॰ मिले हैं।

इसके अतिरिक्त 'नवजीवन' संस्थामें नीचेकी तफसीलके[२] अनुसार रु॰ ५०-८-० मिले हैं :

अब इस पुस्तकको छापनेका कार्य शीघ्र आरम्भ हो जायेगा। किन्तु जितनी अधिक सहायता मिलेगी पुस्तक उतनी ही सस्ती मिलेगी, यह बात गौसेवकोंको याद रखनी चाहिए।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ८-१-१९२८
  1. चन्देकी अलग-अलग रकमें और दानियोंके नाम यहाँ छोड़ दिये गये हैं।
  2. चन्देकी अलग-अलग रकमें और दानियोंके नाम यहाँ छोड़ दिये गये हैं।