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३३०. पत्र : नाजुकलाल चोकसीको

शनिवार [७ जनवरी, १९२८][१]

भाईश्री ५ नाजुकलाल,

तुम्हारा पत्र मिला। मैं बिलकुल ठीक हूँ। तुम्हें यह जानकर आश्चर्य होगा कि मैं मोती या बालकको अबतक देख भी नहीं सका। मैं अपने दैनिक कार्यों में डूबा हुआ हूँ। यदि आनेकी इच्छा हो तो आ जाना। कुसुमबहन कह रही थीं कि तुम्हें आधासीसी है। यह एक बुरा रोग है। इस रोगमें मिट्टीकी पट्टी लाभदायक सिद्ध होगी। खुराक भी हलकी ही होनी चाहिए। कुसुमबहनका काम जरा नाजुक है। अभीतक वह कोई काम चुन नहीं पाई है। जो मर्जीमें आता है और उसे रुचता है सो वह करती है। परन्तु चिन्ता करनेका कोई कारण नहीं है।

बापूके आशीर्वाद

भाईश्री नाजुकलाल
सेवाश्रम, भड़ौच
गुजराती (एस॰ एन॰ १२१४२) की फोटो-नकलसे।

३३१. 'गीता' पर प्रवचन[२]

७ जनवरी, १९२८

आजकी प्रार्थना ९ वें अध्यायपर बोलते हुए बापूने कहा :

जितनी मधुरतासे इस अध्यायका पाठ किया गया वास्तवमें यह अध्याय उतना ही मधुर है। आन्तरिक व्यथासे पीड़ित हमारे जैसे लोगोंके लिए—और अन्तरकी व्यथासे कौन पीड़ित नहीं है—यह रामबाण औषधिकी तरह है। हम सबके अन्तर विकारोंसे परिपूर्ण हैं और उन विकारोंको नष्ट करने तथा भगवानकी शरण में जाने-वालेके लिए यह भगवान द्वारा सुझाया गया उपाय है। इस अध्यायसे हमें यह भी पता चलता है कि जब 'गीता' लिखी गई थी तब वर्णाश्रम धर्ममें ऊँच-नीचका भेद घुस चुका था और लोग एक-दूसरेको अपनेसे नीचा मानने लगे थे। यों तो किसे उच्च कहा जाए और किसे नीच! जो पूर्णतः निर्विकार है वही दूसरोंपर अँगुली उठा सकता है। अपूर्ण व्यक्ति तो सभी एक जैसे होते हैं। और इस अध्यायमें

  1. डाककी मुहरसे
  2. १२-१-१९२८ के यंग इंडिया, तथा १५-१-१९२८ के नवजीवन में भी इन प्रवचनों की रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी। उनसे भी इसे मिला लिया गया है। गांधीजीने ये प्रवचन ६ और ७ जनवरीको दिये थे।