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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दिनभर अपनी-अपनी कठौतियोंमें रुपये गिना करते थे। उन्होंने बताया कि ये सब चेट्टी लोग हैं; इन्हें और इनके बरामदोंको देखकर तुम गलतीसे यह सोच बैठोगे कि ये सब मामूली साहूकार लोग हैं। उन्होंने कहा कि ये लोग छोटे नहीं, बल्कि बड़े साहूकार हैं और इनमें से कुछ तो बहुत ही पैसेवाले हैं। रंगून और दक्षिण आफ्रिकामें चेट्टियोंसे परिचय होनेसे पहले भी में कुछ चेट्टियोंको जानता था। मैं केवल कुछ लोगोंको परिचितोंके रूप में जानता था, लेकिन उस समय में नहीं जानता था कि रंगूनमें रुपये के लेन-देनका लगभग पूरा कारोबार आप लोगोंके हाथ में है। यह बात मुझे रंगून आने के बाद हो मालूम हुई। तब मुझे १९२० में आप लोगोंसे हुए उस निकट परिचयकी याद आई, जो मुझे तब हुआ था जब मैं चेट्टिनाडसे गुजरा था और तिलक स्वराज्य कोषके लिए धन इकट्ठा कर रहा था। मुझे अच्छी तरह याद है कि जैसी सहृदयता आप आज दिखला रहे हैं वैसी ही सहृदयता आपने उस वक्त भी दिखाई थी। लेकिन उस समयका मेरा दौरा तुफानी दौरा था और उस समय मुझे और कुछ सोचने या जाननेका वक्त ही नहीं था। मैं स्वराज्यका दीवाना था। वैसे स्वराज्यका दीवाना तो मैं अभी भी हैं, लेकिन ईश्वरने मुझे काफी सबक सिखा दिया है। मेरी अल्प और तुच्छ स्वराज्य-योजना वास्तव में ईश्वरकी योजना नहीं थी। और अब उसकी ऐसी कृपा हुई कि में शारीरिक रोगसे भी पीड़ित हो गया हूँ जिसके कारण तूफानी ढंगपर काम करना मेरे लिए असम्भव हो गया है। अतः मेरे लिए आपके जीवनका अध्ययन करना और १९२० में[१] जितना कर सका था उससे कहीं बेहतर ढंगसे आपको समझना सम्भव है। आपकी अतिशय कृपाका सबसे अच्छा और एकमात्र प्रतिदान जो में दे सकता हूँ वह यही है कि मैं आपको अपने इस सरसरी तौरपर किये गये अध्ययनका नतीजा बताऊँ । इस अध्ययन में मुझे चेट्टिनाडके अज्ञात मित्रोंसे प्राप्त उन दो पत्रोंसे भी सहायता मिली है जिनमें आपके जीवन के बारेमें विवरण दिये गये हैं।

लेकिन इसकी चर्चा करने से पहले में आपसे आग्रह करूंगा कि खादीको आपने अभीतक जिस हदतक अपनाया है, उससे और अधिक अपनायें। आप चाहें तो आपके पास इतनी शक्ति है कि आप तमिलनाडु ही नहीं, सारे भारतके सम्पूर्ण खादी आन्दोलनका आर्थिक दायित्व सँभाल सकते हैं। जैसा कि मैंने उत्तर भारतके चेट्टियों अर्थात् मारवाड़ी मित्रोंसे कहा है, वैसा ही मैं आपसे भी कह सकता हूँ कि यदि आप चाहें तो खादी आन्दोलनका आर्थिक दायित्व केवल अपने फाजिल पैसेसे ही सम्भाल सकते हैं। अपनी अद्भुत कुशाग्रतासे आप खादी कार्यका संगठन भी कर सकते हैं । अतः आप मुझे यह कहने के लिए क्षमा करेंगे कि इस स्थान पर आते हुए आज सुबहसे मुझे जितनी भी थैलियाँ मिली हैं उनसे मुझे किसी प्रकारका कोई सच्चा सन्तोष नहीं हुआ है। मैंने गिना नहीं है, फिर भी अगर कुल राशि कुछ हजार रुपये भी हो तो वास्तवमें वह आपके घनके समुद्रकी एक बूंद जितनी भी नहीं है। यदि खादीमें आपका सचमुच विश्वास है, यदि आपने चरखेका सन्देश समझ लिया है,

  1. १. वास्तव में यह १९२१ है; देखिए खण्ड २१, ५३ १८९-९० ।