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३२५. राष्ट्रीय कांग्रेस
एकता

डाक्टर अन्सारीके भाषणकी विशेषता थी एकताके लिए उनकी प्रबल इच्छा। वे जानते थे कि उनसे एकता स्थापित करनेकी आशा की जाती थी। और अगर यह काम सिर्फ किसी एक आदमीके बूतेका था तो वह केवल एक डाक्टर अन्सारी ही थे। राष्ट्रका दिया हुआ सर्वश्रेष्ठ सम्मान उन्होंने इसीलिए स्वीकार किया कि उन्हें राष्ट्रमें, इस कार्य में और अपने आपमें विश्वास था। उन्होंने इस महत्वाकांक्षाकी पूर्तिके लिए निश्चय ही कुछ उठा नहीं रखा। भाग्यने भी उनका साथ दिया। श्रीयुत श्रीनिवास अय्यंगारने भी अपनी अपार साहसशीलतासे उन्हें सहायता पहुँचाई। शिमलेकी आंशिक विफलताके बाद कोई भी अन्य सभापति उनके जैसा काम करने का साहस शायद नहीं कर सकता था। मगर श्रीनिवास अय्यंगार तो पीछे हटनेवाले आदमी नहीं थे। उन्होंने डाक्टर अन्सारी, अली भाइयों और मौलाना अबुल कलाम आजादको अपने साथ लेकर अपने स्वाभाविक जोरोशोरसे अपना प्रस्ताव स्वीकार करा ही लिया। वे किसी एक सूत्रको पकड़ कर नहीं बैठे। जब आखिर बाजे और गोकुशीवाले प्रस्तावकी भयंकर त्रुटि—लगभग घातक त्रुटि—उन्हें बतलाई गई, जिसके कारण प्रायः सारीकीसारी ही बात बिगड़ी जा रही थी और उन्हें उसके स्थानपर दूसरी बात सुझाई गई, तो उन्होंने सच्चे मनसे, स्पष्ट रूपसे और उदारताके साथ वह दोष मान लिया और सुझाव स्वीकार कर लिया और कहा कि इस संशोधनसे मूल प्रस्ताव कहीं बेहतर बन जाता है। मुसलमानोंने भी ऐन मौकेपर बात सम्भाल ली। शुरूमें उन्हें कुछ हिचकिचाहट और झिझक तो थी, मगर अन्तमें उन्होंने भी संशोधित प्रस्तावको बिना शर्त मान लिया। पण्डित मालवीयजी जहाँतक उनसे बन पड़े लोगोंकी सामान्य इच्छाके मुताबिक चलनेकी पूरी नीयतसे ही आये थे। वह जानते थे, और अन्य सभी लोग इस बात को समझते थे कि अगर वह चाहें तो एकताका रास्ता बन्द कर सकते हैं। मगर उन्होंने यह नहीं किया। बेशक, कई संशोधन जो वह जरूरी समझते थे उन्होंने पेश किये, मगर उनके संशोधन यदि अस्वीकृत होते तो भी वे मूल प्रस्तावका विरोध करनेवाले नहीं थे। शायद पण्डित मालवीयजीसे पुराना दूसरा कोई कांग्रेसी नहीं है। कांग्रेसके प्रति उनकी निष्ठा अतुलनीय है। उनका देश-प्रेम ऊँचेसे-ऊँचे दर्जेका है। मगर अबतक मेरे मुसलमान मित्र साम्प्रदायिकताको लेकर उनकी सदाशयता और राष्ट्रवादितामें मेरे विश्वासको हमेशा ही कम अहमियत देते रहे हैं। हिन्दू-मुस्लिम प्रश्नपर कहीं-कहीं मेरा उनका मतैक्य नहीं हुआ, लेकिन वहाँ भी मैं उन्हें शककी निगाहसे नहीं देख सका। इसलिए मेरे लिए यह बड़ी खुशीकी बात रही कि अली भाइयोंने एकताके प्रस्तावपर उनके उस महान भाषणको बहुत पसन्द किया। जबतक हिन्दू और मुसलमान नेता एक दूसरेकी नीयत, भाषणों, और कार्योंको