पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 35.pdf/४७८

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४५०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

स्वप्न फला, उसी तरह अपना राजनीतिक स्वप्न भी उन्होंने जामिया मिलियाके जरिये फलीभूत करनेकी कोशिश की। जब कि जामिया मरने-मरनेको था, उस समय हकीम साहबने प्राय: अकेले ही उसे अलीगढ़से दिल्ली लानेका सारा भार उठाया। मगर जामियाको हटानेसे उनकी चिन्ताएँ भी बढ़ गईं। तबसे वे अपनेको जामियाकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करनेके लिए खास तौरपर जिम्मेवार मानने लगे थे और उसके लिए धन जमा करनेमें वे ही मुख्य व्यक्ति थे, चाहे वे अपने ही पाससे दें या अपने दोस्तोंसे चन्दे दिलवायें। इस समय जो स्मारक देश तुरन्त ही बना सकता है, और जिसका बनाया जाना अनिवार्य है, वह है जामिया मिलियाकी आर्थिक स्थितिको पक्की कर देना । हिन्दू और मुसलमान, दोनोंको इसमें एक समान दिलचस्पी है और होनी चाहिए । अबतक देशमें चार राष्ट्रीय विद्यापीठ किसी तरह अपनेको चला रहे हैं। उनमें से जामिया मिलिया एक है। अन्य तीन हैं, बिहार, काशी और गुजरात विद्यापीठ | जामियाकी स्थापनाके समय हिन्दुओंने दिल खोलकर सहायता दी थी । इस मुस्लिम संस्था में राष्ट्रीय आदर्श अक्षुण्ण बना हुआ है। पाठकोंका ध्यान मैं श्रीयुत रामचन्द्रनके[१] लेखकी[२] ओर आकर्षित करता हूँ जो १२ महीनेके अनुभवसे लिखा गया है। इसके प्रधानाचार्य मौलाना जाकिर हुसेन उदार विचारवाले बड़े विद्वान पुरुष हैं। और उनकी उदार राष्ट्रीयतामें कोई शक हो नहीं सकता। मौलाना जाकिर हुसेनके सहायक कई चुने हुए योग्य अध्यापक हैं जिनमें कई एक विदेशोंमें घूमे हुए और वहाँकी उपाधियाँ लिये हुए हैं। दिल्लीमें ले जानेके बादसे संस्थाकी उन्नति ही हुई है, और अगर पर्याप्त सहायता मिले तो वह बड़े सुन्दर फल दे सकती है। इसमें कोई शक ही नहीं कि जो हिन्दू और मुसलमान हकीम साहबकी स्मृतिका आदर करना चाहते हैं, जो असहयोगके रचनात्मक कार्यक्रममें विश्वास रखते हैं और हिन्दू-मुस्लिम एकतामें विश्वास करते हैं, उनका कर्त्तव्य है कि उनसे जितनी हो सके, इस संस्थाको आर्थिक सहायता दें । डा० अन्सारी,[३] श्रीयुत श्रीनिवास अय्यंगार, श्रीयुत जमनालाल बजाज और पण्डित जवाहरलाल नेहरू इस सम्बन्धमें एक अपील निकाल चुके हैं। मैं आचार्य जाकिर हुसेनके जरिये संस्थाकी असली हालतका पता लगाने की कोशिश कर रहा हूँ और डा० अन्सारीसे पत्र-व्यवहार कर रहा हूँ। ज्यों ही मुझे काफी जानकारी मिल जायेगी, मैं पाठकोंके सामने रख दूंगा। लेकिन इस बीच समय व्यर्थ न जाये, इसलिए मेरी प्रार्थना है कि लोग सहायता भेजनी शुरू कर दें। जबतक कि एक समुचित समिति नहीं बन जाती और चन्देका बिलकुल समुचित प्रबन्ध नहीं हो जाता, इस मदमें प्राप्त राशि किसीको नहीं दी जायेगी । मैं आशा करता हूँ कि चन्दा देनेमें हिन्दू-मुसलमान एक-दूसरेसे होड़ लगायेंगे ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ५-१-१९२८
  1. १. जी० रामचन्द्रन, एक गांधीवादी शिक्षाविद् ।
  2. २. ५-१-१९२८ के यंग इंडिया में प्रकाशित “व्हाट आई सो इन द जामिया " ( मैने जामियामें क्या देखा ) शीर्षक लेख।
  3. ३. डा० मु० अ० अन्सारी ।