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३२३. पत्र: जवाहरलाल नेहरूको

[१]

सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
४ जनवरी, १९२८

असंशोधित
प्रिय जवाहरलाल,

मेरा खयाल है, तुम्हें मुझसे इतना अधिक प्रेम है कि मैं जो-कुछ लिखने जा रहा हूँ उसका तुम बुरा नहीं मानोगे । जो हो, मुझे तुमसे इतना ज्यादा प्रेम है कि जब मुझे लिखनेकी जरूरत महसूस होती है, मैं अपनी कलम रोक नहीं सकता।

तुम बहुत ही तेज चालसे चल रहे हो। तुम्हें सोचने-विचारने और परिस्थितिके अनुकूल बननेके लिए कुछ समय लेना चाहिए था। तुमने जो प्रस्ताव तैयार किये और पास कराये, उनमें से अधिकांशके लिए एक सालतक रुका जा सकता था । गणतन्त्रीय सेना (रिपब्लिकन आर्मी) में तुम्हारा कूद पड़ना जल्दबाजीका कदम था। परन्तु मुझे तुम्हारे इन कामोंकी इतनी चिन्ता नहीं, जितनी इस बातकी कि तुम शरारतियों और उपद्रवियोंको प्रोत्साहन दे रहे हो । पता नहीं, तुम अब भी विशुद्ध अहिंसा में विश्वास करते हो या नहीं। परन्तु तुमने अपने विचार बदल दिये हों तो भी तुम यह तो नहीं सोच सकते कि अनधिकृत और अनियन्त्रित हिंसासे देशका उद्धार होनेवाला है। अगर अपने यूरोपीय अनुभवोंके प्रकाशमें देशकी परिस्थितिका सावधानीसे अध्ययन करनेपर तुम्हें विश्वास हो गया हो कि प्रचलित तौर-तरीके गलत हैं तो बेशक अपने ही विचारोंपर अमल करो, मगर मेहरबानी करके एक अनुशासनबद्ध दल तो बना लो । कानपुरका अनुभव तुम्हारे सामने है। प्रत्येक संग्रामके लिए ऐसे मनुष्योंकी टोलियोंकी जरूरत रहती है जो अनुशासन मानें। अपने आदमियोंके चुनावके प्रति तुम्हारी लापरवाही देखकर लगता है कि तुम इस बातको अनदेखा कर रहे हो ।

अब तुम राष्ट्रीय कांग्रेसके कार्यवाहक मन्त्री हो । ऐसी सूरतमें अगर मैं तुम्हें सलाह दे सकता हूँ तो वह यह है कि तुम्हारा कर्त्तव्य है कि एकता विषयक केन्द्रीय प्रस्तावपर और साइमन कमीशनके[२] बहिष्कारके महत्त्वपूर्ण, परन्तु गौण प्रस्तावपर ही अपनी सारी शक्ति लगाओ। एकता विषयक प्रस्तावको[३] तुम्हारी जबर्दस्त संगठन क्षमता और जनताको समझाने-बुझानेके तुम्हारे तमाम बड़े गुणोंके उपयोगकी जरूरत है।

  1. १. यह पत्र जवाहरलाल नेहरूकी निम्नलिखित टिप्पणीके साथ प्रकाशित हुआ था: "मैं यूरोपसे दिसम्बर १९२७ में लौंटा और सीधा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके मद्रास अधिवेशनमें चला गया। वहाँ मेरे सुझावपर कई-एक प्रस्ताव पास हुए। यह पत्र गांधीजीने इसलिए लिखा क्योंकि वे इस अधिवेशनमें मेरे कामों से खुश नहीं थे"।
  2. २. देखिए परिशिष्ट ७ ।
  3. ३. देखिए परिशिष्ट ९ ।