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३२१. पत्र: जमनालाल बजाजको

सोमवार [ १९२७ ]

[१]

चि० जमनालाल,

इसके साथ राजेन्द्रबाबूका पत्र है। मैंने तो उन्हें लिखा है कि मामला वापस लेना हो तो ले भले ही लें; पर वहाँ बैजनाथजीको एक बार लिखने के बाद इसे वापस नहीं लिया जा सकता। मुझे इस पत्रसे दुःख हुआ है।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (जी० एन० २८८१) की फोटो-नकलसे ।

३२२. पत्र : प्रभावतीको

सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
सोमवार [२ जनवरी, १९२८]

[२]

चि० प्रभावती,

तुमारे दोनों पत्र मीले थे । तुमको यहां लानेका मैंने तो खूब प्रयत्न कीया । अब भी हो रहा है। देखें विधाता क्या चाहता है। 'गीताजी' के दूसरे अध्यायका श्लोक याद करो : दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहः ।[३]

मेरा स्वास्थ्य अच्छा है। मैं यहां कमसे-कम तीन मासतक तो हुं । मृत्युंजय[४] और विद्यावती[५] दोनों अच्छे हैं।

बापुके आशीर्वाद

जी० एन० ३३०३ की फोटो-नकलसे ।
 
  1. १. पांचवें पुत्रको बापूके आशीर्वाद में भी इस पत्रको १९२७ के पत्रोंके साथ ही रखा गया हैं।
  2. २. गांधीजीके अगले तीन मासतक तीन मासतक " आश्रम में ही ठहरनेके उल्लेखसे यह पत्र जनवरी, १९२८ के प्रथम सप्ताह में लिखा प्रतीत होता है; देखिए “पत्र : घनश्यामदास बिड़लाको ”, ५-१-१९२८ ।
  3. ३. २, ५६ ।
  4. ४. राजेन्द्रप्रसादका पुत्र |
  5. ५. मृत्युंजयकी पत्नी और प्रभावतीकी बहन।