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पत्र : मणिलाल व सुशीला गांधीको

तो उसे चलानेका लोभ हमें छोड़ देना चाहिए। और उसे अखबारकी तरह चलाना हो तो वह आसानीके साथ फीनिक्ससे भी चलाया जा सकता है। मेरी इतनी बात तो पक्की ही समझो कि कर्ज करके या अपने बूतेसे बाहर जाकर तो उसे कभी न चलाया जाये ।

यदि इस शर्तके साथ वहीं रहना मुश्किल जान पड़े तो तुम दोनों यहाँ चले आओ । बाजी अपने हाथसे कभी मत जाने देना ।

यहाँके कर्जके बारेमें तुम्हें लिखा था किन्तु तुमने उसका उत्तर नहीं दिया । मैं फिर याद दिला रहा हूँ ।

और अब सुशीलाको :

तुम्हारे पत्र नीरस होते हैं । मणिलाल ठीक ही लिखता है कि वह काममें व्यस्त रहनेके कारण नहीं लिख पाता; किन्तु तुम्हें तो लिखना ही चाहिए। यदि तुम्हें जीवनमें रस मिलता हो तो लिखनेको बहुत-कुछ मिल जायेगा । बच्चे जब अपने सुख- दुःखकी बात माता-पिताको लिखते हैं तो पत्नेके पन्ने भर देते हैं किन्तु तुम्हारे पत्रमें चन्द लकीरोंके सिवा और कुछ नहीं होता। ऐसा लगता है कि अब भी तुम्हारा शरीर पनपा नहीं है। यदि चाहो तो वहाँके किसी डाक्टरको दिखा लेना; शरीर तो पनपना ही चाहिए। यदि यहाँ आनेकी इच्छा हो तो तुम दोनों आपसमें सलाह कर लेना। मेरी तरफसे तो अनुमति है ही। रहना भी तुम्हारी इच्छापर निर्भर करता है । यहाँ रहना चाहो तो यहाँ नहीं तो अकोला रहना। तुम यह मानना कि मैं तुम्हारा ससुर नहीं बल्कि पिता हूँ । सेवा करनेके लिए शरीरका ध्यान रखना भी तुम्हारा कर्तव्य है। तुम अपने इस धर्मका भी पालन करना ।

मैं नीलकंठसे[१] कल मिला था । वह जापानसे वापस लौट आया है। तुम्हें उसका पत्र तो मिला ही होगा । बालुभाई भी मुझसे मिले थे।

इन बातोंकी जानकारी देना :

उठने और भोजनका समय । कितनी बार और क्या खाती हो । दिनका कार्यक्रम, वहाँ जिन लोगोंसे तुम्हारा परिचय है और वहाँका खर्च आदि । तुम चारोंके हस्ताक्षरवाला तार मिल गया था ।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (जी० एन० ४७३२) की फोटो-नकलसे ।
 
  1. १. मशरूवाला।