पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 35.pdf/४७०

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४४२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तो हमें आखिर ऐसी जगह लाकर छोड़ देगा जहाँसे आगे हम कहीं जा नहीं सकते और जिसके कारण उन बहुतसे अनिच्छुक और अज्ञानी स्त्री-पुरुषोंको अपार कष्टोंका सामना करना पड़ेगा जो न तो जानते हैं कि स्वतन्त्रता क्या चीज है और न उस बहुमूल्य वस्तुको खरीदनेकी उनकी कोई इच्छा ही है। अहिंसाका तरीका सबसे अचूक और छोटा है और इसमें कमसे-कम कष्ट सहना पड़ता है, और वह भी सिर्फ उन्हींको जो कष्ट सहने को तैयार हों, बल्कि खुशी-खुशी तैयार हों । मगर हर हालत में लोगोंको तीव्र, व्यापक और भयंकर कष्ट और पीड़ा अवश्य ही सहनी पड़ेगी । अबतक हमें जो भुगतना पड़ा है, वह आगे आनेवाले कष्टोंका नमूना-भर है।

इसलिए मेरे समान जिनका यह विश्वास है कि इस शासन पद्धतिमें ही दोष है, उनका काम यह है कि वे शासकोंसे प्रार्थना करना छोड़ दें और अपने उद्देश्य और तरीकेमें अटल विश्वासके साथ वे राष्ट्रसे ही निरन्तर अपील करते रहें। जबतक कि राष्ट्रमें कैदखानेके दरवाजे खोल देनेकी ताकत न आये, तबतक ये कैदी सम्मान और शानके साथ रिहा नहीं कराये जा सकते । वैसा समय आनेतक हम धैर्य और साहसके साथ इन लोगोंकी नजरबन्दीको सहन करें और आप भी ऐसी सजा भोगने के लिए खूब खुशीसे तैयार हों । हम बहरोंके आगे दयाका रोना रोकर स्वतन्त्रताके दिन- को और नजदीक तो निश्चय ही नहीं लायेंगे, बल्कि इस तरह तो हम जनतामें कैद और फाँसीसे डरनेकी मनोवृत्ति बेकार ही पैदा कर देंगे । स्वतन्त्रता-प्रेमियोंको तो इनका स्वागत मित्र और मुक्तिदाताओंके रूप में करना सीखना है ।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २९-१२-१९२७

३१७. भेंट : 'इंडियन डेली मेल' के प्रतिनिधिसे

बम्बई
३० दिसम्बर, १९२७

यह पूछे जाने पर कि मद्रासके नेताओंने संविधानके जो तीन मसविदे[१] तैयार किये हैं उनमें से वे भारतके लिए सबसे उपयुक्त किसे मानते हैं, श्री गांधीने कहा कि भारतके भावी संविधान के सम्बन्धमें मेरा कोई निश्चित मत नहीं है । तथापि उन्होंने आगे कहा :

भारतका संविधान कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे कोई एक व्यक्ति तय करे।

 
  1. १. कांग्रेसके मद्रास अधिवेशनमें स्वराज्य संविधानके कई मसविदे प्रस्तुत किये गये थे; कार्यसमितिको यह अधिकार दिया गया था कि वह अन्य संगठनोंके साथ परामर्श करके एक संशोधित मसविदा एक विशेष सम्मेलनके सम्मुच स्वीकृतिके लिए रखे।