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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

चरखेके महत्त्वके प्रमाण हमें दक्षिणमें कन्याकुमारीसे लेकर नागरकोइलतक मिलते हैं, पूर्वमें ठीक असमतक मिलते है और अब उत्तरमें ठीक कश्मीरतक मिले हैं। पश्चिममें ठेठ काठियावाड़में मिलते हैं। पश्चिममें मैं कराचीको नहीं लेता, क्योंकि कराची नया शहर है। और यह स्वाभाविक ही है कि वहाँ लोग धनके मदमें चरखेकी कीमत न जानें। वैसे वहाँ भी रणछोड़दास जैसे खादीभक्तकी प्रवृत्तिसे आजतक नये ढंगसे चरखा-प्रचारका कार्य चल रहा है और खादीका उपयोग हो रहा है।

माई हरजीवनदासके लेखसे हमें जो जानकारी मिलती है वह हमें चेतावनी देती है। जानकारी यह है कि वहाँ जो रेशम होता है वह हाथ से कता हुआ नहीं होता । आजतक हममें से शौकीन लोग, यह मानकर कि वह हाथकता होगा, कश्मीरी रेशमका उपयोग करते हैं। लेकिन जो हाथसे ही कते हुए सूत, ऊन अथवा रेशमके कपड़ेका उपयोग करना चाहते हैं, यह बात स्पष्ट है कि उनके लिए कश्मीरी रेशम भी त्याज्य है। उत्तम बात तो यह है कि अपने पहनने लायक कपड़ेके लिए वे हाथसे कातें, मध्यम बात यह है कि अपने आसपाससे कतवा लें, और कनिष्ठ यह कि हाथ कताईके नामपर प्रामाणिक विक्रेतासे जो मिल जाये सो पहनें ।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, २५-१२-१९२७

३०७. हिन्दू विधवाएँ क्या करें ?

अजमेरसे एक सज्जन हिन्दीमें लिखते हुए इस प्रकार सूचित करते हैं:

मैं चाहता हूँ कि आप मेरे निम्नलिखित प्रश्नोंका उत्तर 'नवजीवन' में दें।

उन हिन्दू विधवाओंको जो पुनर्विवाह नहीं करना चाहतीं, अपना शेष जीवन किस प्रकार व्यतीत करना चाहिए ?

महर्षि दयानन्दने तो लिखा है कि उनको ब्रह्मचर्यपूर्वक रहते हुए स्वयं पढ़ना और बालिकाओंको पढ़ाना चाहिए ।

क्या आप इस बात से सहमत हैं ? इसको मानते हुए और भारतकी

वर्तमान स्थितिको देखते हुए आप और कौन-कौन-सी बातोंको इसके साथ जोड़ देना चाहते हैं ?

महर्षि दयानन्दका अभिप्राय यह नहीं है कि केवल सीखने, सिखलानेमें ही विधवा अपना सारा समय लगाये; यह बात तो केवल दृष्टान्त स्वरूप ही हो सकती है। शिक्षाका अर्थ इस जगह तो केवल अक्षर ज्ञान ही है। अक्षर-ज्ञान एक खास हदतक जरूरी है। पर मेरी दृष्टिमें इससे अधिक जरूरी शिक्षा मुखमरी दूर करनेकी है। और मेरा यह निश्चय दिनोंदिन बढ़ता जाता है कि वह चरखेकी शिक्षा है। अगर हम पढ़े-लिखे, अपनेको ऊँचे वर्णके माननेवाले मध्यवित्तीय लोग अपने वर्गके बाहर रहनेवाले गरीबोंकी हालतका विचार करें तो किसीको चरखके सिवाय और कुछ सूझ ही नहीं सकता। चरखा मुख्यतः स्त्रियां ही चलायेंगी क्योंकि समय भी विशेषरूपसे उन्होंके पास होता है ।