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३००. एक पत्र

स्थायी पता : आश्रम, साबरमती
२३ दिसम्बर, १९२७

प्रिय मित्र,

आपकी मां ने आपके द्वारा जो दस रुपये भेजे हैं उसकी रसीद यह रही । कृपया इस दानके लिए उन्हें धन्यवाद दे दें ।

जो व्यक्ति सच्चा ब्रह्मचारी बनना चाहता है उसे सभी प्रकारके उत्तेजक भोजन, उत्तेजक बातचीत, उत्तेजक प्रदर्शनोंसे बचना चाहिए और अपने शरीरको किसी उपयोगी श्रमकार्य में जैसे कताई, धुनाई, बुनाई आदिमें लगाना चाहिए तथा अपने दिमागको शुद्ध चीजें पढ़ने या लिखनेमें लगाना चाहिए तथा उसे बराबर ईश्वरका ध्यान करना चाहिए और ऐसा विश्वास करना चाहिए कि वह हमारे सभी विचारों तथा कार्योंको देखता है ।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत ...

तीओन

पुराना सक्कर
अंग्रेजी (एस० एन० १२६६३) की माइक्रोफिल्मसे ।

३०१. पत्र : एस० वी० विश्वनाथ अय्यरको

स्थायी पता : आश्रम, साबरमती
२३ दिसम्बर, १९२७

प्रिय मित्र,

मैं आपके पत्रका इससे पहले उत्तर देने में असमर्थ था। परीक्षा लेने के बारेमें आपके सुझाबके सिलसिलेमें क्या किया जा सकता है, इसे देखुंगा; तथापि जो चीज महत्त्वपूर्ण है वह कोरा किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि ठोस व्यावहारिक कार्य है।

कानके गहनोंके सम्बन्ध में आपने जिस पूर्वग्रहका जिक्र किया है उसके बावजूद मैं बहुत-सी स्त्रियोंको उन्हें दे डालनेके लिए राजी करनेमें सफल हुआ हूँ । हमें ऐसी