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२९८. पत्र : एस० जी० दातारको

स्थायी पता : आश्रम, साबरमती
२३ दिसम्बर, १९२७

प्रिय मित्र,

मुझे आपका पत्र तथा श्राद्धके विषयपर आपका लेख प्राप्त हुआ, लेकिन उसे मैंने छापा नहीं, क्योंकि आपके दृष्टिकोणपर 'यंग इंडिया' के पृष्ठोंमें कई बार चर्चा की जा चुकी है। मेरी रायमें अपने दिवंगत माता-पिताका जो सबसे अच्छा श्राद्ध कोई पुत्र कर सकता है वह यह है कि अपने माता-पिताके सभी अच्छे गुणोंको अपने जीवनमें उतार ले। शास्त्रोंके शब्दोंको निरे दोहराना तो उनकी आत्माका हनन करना है ।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत एस० जी० दातार

वकील

बागलकोट
अंग्रेजी (एस० एन० १२६६१) की माइक्रोफिल्मसे ।

२९९. पत्र : आर० रामास्वामीको

स्थायी पता : आश्रम, साबरमती
२३ दिसम्बर, १९२७

प्रिय मित्र,

मुझे आपका पत्र तथा खादीके विषयमें संलग्न लेख मिला। मैं नहीं समझता कि उसे 'यंग इंडिया' में छापना जरूरी है। इसलिए मैं उसे लौटा रहा हूँ। मेरी रायमें जिस प्रकारका एक सामान्य वक्तव्य आपने तैयार किया है उस प्रकारके वक्तव्य छापनेसे खादी लोकप्रिय नहीं होगी। इसके लिए संगठन और व्यक्तिगत प्रचार-कार्य जरूरी है, और ये दोनों ही जहाँतक सम्भव है, किये जा रहे हैं।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत आर० रामास्वामी

६, शिवप्पा मैन्शन

दादर, बम्बई
अंग्रेजी (एस० एन० १२६६२) की माइक्रोफिल्मसे ।