पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 35.pdf/४५५

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

२९७. पत्र : कमलादेवीको

स्थायी पता : आश्रम, साबरमती
२३ दिसम्बर, १९२७

प्रिय मित्र,

मुझे आपका पत्र[१] पसन्द आया । आपने भारतकी लड़कियों और स्त्रियोंके बारेमें जो कुछ कहा है वह मोटे तौरपर सही है। लेकिन गुलामीको दूर करनेके लिए आप और आपकी जैसी स्थितिमें जो और लड़कियाँ हैं, वे बहुत कुछ कर सकती हैं। यदि आप अपने निश्चयमें दृढ़ रहें और साथ ही विनम्र भी रहें तो मुझे विश्वास है कि आपके पिता आपको अपने मनकी बात करने देंगे। लेकिन परिणाम प्राप्त करनेके लिए आपको धीरजसे काम लेना होगा। आपने अपने लिए साबरमती आश्रममें जिस सादगी- के जीवनकी कल्पना की है, वैसा जीवन वहीं विताइए। आखिरकार सबसे बड़ी चीज तो मन ही है । और यदि आपके मनमें सादगी और शुद्धताका विचार दृढ़ रूपसे जम गया है तो संसारकी कोई शक्ति मनसे उस[२] विचारको अलग नहीं कर सकती ।

आपने जीवनकी आवश्यकताओंके बारेमें अपने विचारोंके सम्बन्धमें जो कुछ कहा वह मैंने देखा । क्या आप चाहती हैं कि मैं आपके पितासे बात करूँ और उनके साथ पत्राचार भी करूँ? आपको अपने पितासे दिल खोलकर बात करने में और उनपर पूरा विश्वास करने में डरना नहीं चाहिए ।

हृदयसे आपका,

श्रीमती कमलादेवी

अखिल मिस्त्री लेन

कलकत्ता
अंग्रेजी (एस० एन० १२६६०) की माइक्रोफिल्मसे ।
 
  1. १. कमला देवीके पिता उनका विवाह कर देना चाहते थे, किन्तु वह स्वयं गांधीजीके आश्रम में जाकर रहना चाहती थीं। देखिए खण्ड ३४, पृष्ठ २८४ तथा पृष्ठ ४२१-२२ ।
  2. २. मूलमें यहाँ 'देयर था पर इसे 'दैट' करके अनुवाद किया गया है।