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पत्र : देवी वेस्टको

विनम्र निवेदनकी भावनासे करना चाहिए। हम लोग यहाँ तीन दिनसे प्रार्थना करते आ रहे हैं। प्रार्थनासे मनको शान्ति मिलती है, एक ऐसा बल और ऐसी सान्त्वना मिलती है जो अन्य किसी तरीकेसे नहीं मिल सकती; परन्तु प्रार्थना हृदयसे निकलनी चाहिए। प्रार्थना जब हृदयसे नहीं निकलती, तो वह सिर्फ ढोल पीटने जैसी होती है, या कहिए कि गलेसे निकली आवाज-मात्र होती है। परन्तु जब वह हृदयसे निकलती है, तो वह विपत्तिके पहाड़ोंको पिघला सकती है। जो भी चाहे इस बलकी परीक्षा ले सकता है ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २९-१२-१९२७

२८५. पत्र : देवी वेस्टको

स्थायी पता : आश्रम, साबरमती
२१ दिसम्बर, १९२७

मुझे तुम्हारा पत्र मिला।[१] बाढ़से[२] जबर्दस्त हानि हुई है, लेकिन इसमें बाढ़- पीड़ित लोगोंके सर्वोत्तम गुण भी प्रकट हुए हैं। सहसा ही एक संगठन खड़ा हो गया, जिसने बड़ी दृढ़तापूर्वक और उतनी ही सफलतापूर्वक इस भयंकर संकटका मुकाबला किया ।

इधर कुछ समयसे कुमारी इलेसिन मुझे नियमित रूपसे लिखती रही है, और अवश्य ही वह हमेशाकी तरह धुनी और भली है। आजकल एल्बर्ट[३] कभी नहीं लिखता। फिर भी मुझे उसके समाचार मिले थे, और मैं जानता हूँ कि वह तथा उसका परिवार खूब अच्छी तरह हैं। मणिलाल और उसकी पत्नी मुझे नियमित रूपसे लिखते

मैं काफी अच्छा हूँ । शायद मैं पहले जैसा स्वस्थ तो कभी नहीं हो सकूंगा, लेकिन ईश्वरने जो कुछ शक्ति अभी भी मुझमें रहने दी है उसके लिए मैं उसका कृतज्ञ हूँ ।

मुझे आशा है कि तुम नियमित रूपसे 'यंग इंडिया' और 'इंडियन ओपिनियन' पा रही हो । अगर नहीं, तो कृपया मुझे सूचित करो । प्रभुदास पहलेसे काफी बेहतर है। वह अपने पिता के साथ एक पहाड़ी स्थानपर है। और लोग, जिन्हें तुम जानती हो, मजेमें हैं। अगर तुमने फोटो खिंचाई हो तो मुझे एक जरूर भेजो। मुझे विश्वास है कि आश्रममें जो लोग तुम्हें जानते और खूब प्यार करते हैं, वे यदि तुम्हें प्रत्यक्ष नहीं तो तस्वीरमें ही देखकर प्रसन्न होंगे। जैसा कि तुमने देखा होगा, मैंने लंका

  1. १. अपने २-१०-१९२७ के पत्रमें देवी वेस्टने गांधीजीको उनके जन्म-दिवसपर बधाई दी थी।
  2. २. जुलाई १९२७ में गुजरातमें। देखिए खण्ड ३४ ।
  3. ३. ए० डब्ल्यू० वेस्ट; देवी वेस्टके भाई । ३५-२७