२७८. पत्र : आश्रमकी बहनोंको
कटक
मौनवार [१९ दिसम्बर, १९२७]
ईश्वरकी इच्छा होगी तो इसके बाद तुम्हें पत्र लिखनेके लिए एक ही सोमवार रहेगा ।
मीराबहनका पत्र मिल गया । तुमने पोशाकके विषयमें अधिक चर्चा करनेके लिए लिखा है। उसपर अभी तो चर्चा नहीं करूंगा, परन्तु जब हम मिलें तब जरूर प्रश्न करना । भीतर ही भीतर जबतक शृंगारका मोह बाकी है, तबतक देखा-देखी कुछ भी फेरबदल या त्याग करना व्यर्थ है। परन्तु जब मोह उतर जाये और फिर भी मन उस तरफ जाता हो, तब तो देखादेखी, शर्मसे या किसीभी बहानेसे मोहको मारना चाहिए और उचित परिवर्तन कर लेना चाहिए। मोहादि शत्रु हमें इतना तंग करते हैं कि जहाँसे भी उचित मदद मिल जाये, उसका उपयोग करके हमें उनसे अपनी रक्षा करनी चाहिए। यह सब उनके लिए लिख रहा हूँ जो सच्चे हैं और सच्चे बनना चाहते हैं 'गीताजी' में एक जगह कहा गया है कि जो ऊपरसे संयम करके मनमें विषयोंका सेवन करता है, वह मूढ़ात्मा मिथ्याचारी है। यह वाक्य पाखण्डीके लिए है। वही गीताजी' सच्चा प्रयत्न करनेवाले के लिए कहती हैं कि प्रमाथी इन्द्रियोंका बार-बार संयम करो ।
बापूके आशीर्वाद
- गुजराती (जी० एन० ३६७४) की फोटो-नकलसे ।
२७९. पत्र : नारणदास गांधीको
मौनवार [ १९ दिसम्बर[२] ] १९२७
इसके साथका पत्र पढ़कर उसका उत्तर भिजवाना और फिर यही पत्र उत्तर देनेके लिए भाई फूलचन्दके पास भिजवा देना। भाई फूलचन्द मुझे मूल पत्र भी भिजवा दें ताकि मैं उत्तर दे सकूँ । उत्तर मद्रासके पतेपर देना ।