पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 35.pdf/४३३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

२७१. गोरक्षाके बारेमें लेख

श्री वालजी देसाईने जो लेख 'नवजीवन' और 'यंग इंडिया' में गुजराती और अंग्रेजीमें गोरक्षापर लिखे हैं, कई पाठकोंकी ओरसे उन्हें पुस्तक रूपमें प्रकाशित करनेकी माँग आई है। उसके खर्चके लिए धूलियाके श्री रामेश्वरदासने २५ रु० देनेको लिखा है। इतनेसे ही पुस्तकको प्रकाशित करनेका खर्च निकल आनेमें सन्देह है, इसलिए पुस्तक तभी प्रकाशित की जा सकती है, जब दूसरे गोभक्त भी सहायता दें । 'नवजीवन' की आर्थिक स्थिति इसके बिना उसे प्रकाशित करनेकी नहीं है। अखिल भारतवर्षीय गोरक्षा मण्डलके पास जो धन है वह रचनात्मक कार्यके लिए ही काफी नहीं है, इसलिए शेष रकमको उसमें से पूरा करनेका साहस नहीं होता। अगर पाठकगण थोड़ी-थोड़ी सहायता दे देंगे तो पुस्तक तुरन्त प्रकाशित कर दी जायेगी। अगर कुछ नफा मिला तो वह गोरक्षा मण्डलको दिया जायेगा । प्राप्त सहायताके अनुसार यह पुस्तक गुजराती, अंग्रेजी और हिन्दीमें प्रकाशित की जायेगी ।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, १८-१२-१९२७

२७२. पत्र : तिरुकोट्टासुन्दरम् पिल्लेको

कटक
१८ दिसम्बर, १९२७

प्रिय तिरुकोट्टासुन्दरम्,

मैं लंकाका दौरा समाप्त करनेवाला था, उस समय आपका पत्र[१] मिला। मैं आपको पहले उत्तर नहीं दे सका क्योंकि आपका पत्र इधर-उधर हो गया था, और इसलिए मेरे ध्यानमें नहीं आ सका। मैंने मामलेकी पूरी जाँच-पड़ताल की है और इस निष्कर्षपर आया हूँ कि श्री वरदाचारीने जितनी जल्दी सम्भव हो सकता था उतनी जल्दी थैलीका धन गिना था । जब दौरे तेजीसे किये जा रहे हों उस समय थैलियोंका घन दाताओंकी उपस्थितिमें, या जिस दिन थैलियाँ मिलें उसी रात गिनना सम्भव नहीं है । दाता लोग थैलियाँ तभी देते हैं जब उन्हें दान प्राप्त करनेवालेकी ईमानदारीमें तथा दानकी रकमको सहेजकर रखने तथा खर्च करनेकी खातिर ईमानदार

 
  1. १. तिरुकोट्टासुन्दरम्ने गांधीजीका ध्यान पालमकोट्टामें प्राप्त थैलीमें २००० रुपयेकी कमीकी ओर दिलाते हुए उनसे जाँच करनेका अनुरोध किया था ( एस० एन० १२६४० ) ।