पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 35.pdf/४३०

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४०२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हमें उनसे उनकी बहादुरी, उनका महान स्वार्थ-त्याग, उनकी परिश्रमशीलता, उनका देश-प्रेम और अपने आदर्शोंपर दृढ़ रहनेकी आन सीखनी चाहिए। हम जब बिना किसी संगतिके या यथेष्ट ज्ञानके उनके इक्के-दुक्के कामोंकी नकल करने लगते हैं, तभी भयंकर भूल करते हैं ।

मेरा दावा है कि जिन समाज-सुधारोंकी मैं आज पैरवी कर रहा हूँ, और जिसमें परमात्माकी कृपासे मेरे कई प्रसिद्ध देशवासी भी मेरा साथ दे रहे हैं, उनके बिना हिन्दू धर्मके नष्ट हो जानेका खतरा है।

लेखकके अविश्वासके बावजूद चरखा बराबर प्रगति ही करता जा रहा है। श्रमके सागरमें चरखेका काम ही मेरा योगदान है।

मेरा दावा है कि नगरपालिकाओंसे मानपत्र स्वीकार करते समय उनके बूचड़- खानोंमें होनेवाली पशु-हत्याओंका मुझपर प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि मानपत्र लेनेके बहाने मुझे उन्हें अपने सिद्धान्तका उपदेश देनेका अवसर मिलता है। और मुझे यह लिखते हुए खुशी है कि वे इसका कभी बुरा नहीं मानते और कभी-कभी तो वे मेरे विनम्र सुझाव स्वीकार भी कर लेते हैं ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १५-१२-१९२७

२६७. पत्र: एच० ए० जे० गिडनेको

स्थायी पता : आश्रम, साबरमती
१५ दिसम्बर, १९२७

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला था।[१] मेरे पास आपको कोई लम्बा सन्देश भेजनेके लिए समय नहीं है, लेकिन मैं यह कह सकता हूँ :

ऐंग्लो-इंडियन समाजकी मौजूदा और भावी नीति यूरोपीयोंके रूपमें मान्यता प्राप्त करनेकी नहीं होनी चाहिए, बल्कि उसे भारतके जन-साधारणके उद्देश्यको अपना मानकर चलना चाहिए, क्योंकि जो कुछ भी वे हैं, जन-साधारणकी बदौलत हैं। यूरोपीय खूनको एक बाधा मानना चाहिए और इसका इस्तेमाल यूरोपकी सतही चीजोंकी नकल करनेमें नहीं, बल्कि यूरोपीयोंके अच्छे गुणोंको आत्मसात् करने और उन्हें जन-साधारणके साथ बाँटनेमें करना चाहिए। कुछ ऐंग्लो-इंडियनों द्वारा अपने-

 
  1. १. अपने २५-११-१९२७ के पत्रमें कर्नल गिडनेने गांधीजीसे ऐंग्लो-इंडियन रिव्यूके लिए बड़े-दिनके अवसरपर एक सन्देश भेजनेको कहा था।