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आरोप-पत्र

मेरे उपदेश और शिक्षाएँ, भावुकतामय या अव्यावहारिक नहीं हैं, क्योंकि मैं वही सिखलाता हूँ जो पुराना है, और जो कहता हूँ वही करनेकी कोशिश करता हूँ, और मेरा यह दावा है कि जो मैं करता हूँ वह हरएक आदमी कर सकता क्योंकि मैं एक बहुत मामूली आदमी हूँ; मेरे सामने भी वही प्रलोभन हैं, मुझमें भी वही कमजोरियाँ हैं, जो हममेंसे निर्बलसे-निर्बल मनुष्यमें हैं ।

दक्षिण आफ्रिकामें उस समयके निर्धारित लक्ष्यके मानदंडसे पूरी सफलता मिली थी । जो बात छोटे समाजोंपर लागू होती है, वही बड़े समाजोंपर भी होती है, केवल उसी तरहका प्रयत्न ज्यादा बड़े पैमानेपर करना पड़ेगा ।

मुझे अपनी पद्धतिमें इतना अधिक विश्वास है कि मैं यह भविष्यवाणी कर सकता हूँ कि आनेवाली पीढ़ियाँ १९२० और १९२१ सालको भारतवर्षके इतिहास में सबसे गौरवशाली पृष्ठ समझेंगी, और उनमें भी बारडोलीकी 'कलाबाजी' सबसे महान् काम समझा जायेगा । बारडोलीके निर्णयने हिन्दुस्तानको इस लायक बनाया कि वह दुनियासे नजरें मिला सके, सिर ऊँचा रख सके। राष्ट्रके लिए यही एकमात्र सच्चा, बहादुरीका और प्रतिष्ठापूर्ण रास्ता था जिसे वह कांग्रेसके सिद्धान्तोंमें आस्था रखते हुए कर सकता था । स्वराज्यकी लड़ाई कोई छलावा तो नहीं; और अगर किसीको बिना चाहे तकलीफ उठानी भी पड़ी तो इसलिए कि वे आगके साथ खेल रहे थे ।

खिलाफत आन्दोलनमें पड़नेसे दोनों जातियाँ सबल हुई हैं और उससे एक ऐसी जन-जागृति उत्पन्न हुई है जिसके किसी और तरहसे पैदा होने में एक जमाना लग जाता । अगर सच्ची एकता कभी होगी, तो मेरी ही शिक्षाओंके माननेसे होगी । आजके हिन्दू-मुस्लिम झगड़े, हिन्दुओंके आपसी झगड़े और मुसलमानोंके भी अपने आपसी झगड़े जन-जागृतिके ही चिह्न हैं। आज जो हम देख रहे हैं वह तो आत्म- शुद्धिकी क्रियामें ऊपर उतरा आई मैल या गन्दगी है । लेखक महोदय चीनी साफ करनेके किसी कारखाने में चीनीका साफ किया जाना देख आयें, तब वे मेरा मतलब ज्यादा ठीक समझ जायेंगे । यह मैल सिर्फ फेंक दिये जानेके लिए ही सतहपर आ गया है ।

मुझे इसका पता नहीं कि पण्डित मदनमोहन मालवीय और लेखकके गिनाये दूसरे नेता मेरी राजनीतिसे आजिज आ गये हैं। कुछके बारेमें तो मैं जानता हूँ कि उनके साथ बात ठीक इसकी उलटी ही है। वे अगर आजिज आ गये हों, तो भी मुझे आशा है कि मेरा विश्वास उन सभी मित्रोंका मतभेद भी सह लेगा, जिनकी सम्मतिका मेरे लिए काफी कुछ मूल्य है ।

लोकमान्यके बारेमें लेखक अपना अज्ञान तब प्रकट करते हैं जब वे उनकी वे नीतियाँ बतलाते हैं जो लोकमान्यकी कभी थी ही नहीं। मैं जानता हूँ कि मेरे और उनके बीच कुछ बुनियादी मतभेद थे, मगर लेखकने जिनकी कल्पना की है, मतभेद वैसे नहीं थे। एक बात जो हमें अपने आदर्श नायकोंसे सीखनी चाहिए वह यह है कि हमें उनके कामोंकी, बेसमझे-बूझे आँख मूंदकर नकल नहीं करनी है। ३५-२६