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२६६. आरोप-पत्र

क्या आप मानते हैं कि दुष्टोंका दलन और धर्म-परायणोंका संरक्षण प्रत्येक आदर्श सरकार और उससे भी अधिक महात्माजनों का प्राथमिक कर्त्तव्य है ? अगर आप इसे स्वीकार करते हैं, तो फिर इस युगों पुराने सिद्धान्तसे आपके राजनीतिक दर्शनका कहाँ मेल बैठता है ? क्या कुरुक्षेत्र की युद्ध-भूमिमें अर्जुन को दिये श्रीकृष्णके उपदेशका यही सार नहीं ?

क्या अवतारोंने भी इसी बुद्धिमतापूर्ण नीति का पालन नहीं किया था जिससे जग-विख्यात राजा बली का राज्य छीना गया, बालि मारा गया और जरासंघ का नाश हुआ ?

आप साधारण मानवों से और वह भी उनके एक विशाल समुदाय से यह आशा कैसे रखते हैं कि वे अपने धूर्त शत्रुओं के वार बिना किसी तरह के बदले को कार्रवाई के सहते जायेगे ? इस वृष्टि से यदि हम उच्च भावनाओं से ओतप्रोत आपकी शिक्षाओं और उपदेशों को अव्यावहारिक और साधारण मानवों के लिए अशक्य मानें तो क्या वह अनुचित होगा ? दक्षिण आफ्रिका में आपकी अस्थायी और जब-तब किसी-किसी बातमें मिली सफलता को आपके प्रशंसकोंने बहुत बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत किया है और साधारण बुद्धिके हिन्दुस्तानी यह भूल करके कि दक्षिण आफ्रिका का उदाहरण हिन्दुस्तान-जैसे विशाल देशपर जिसमें बहुत-सी भाषाएँ और धर्म हैं, लागू नहीं पड़ता, आँख मूंदकर(भेड़ोंकी तरह) आपके पीछे चलकर मुश्किल में पड़ गये हैं। बहुत से देशभक्तों का जीवन बर्बाद करने के बाद क्या आपने अबतक यह नहीं समझा कि 'एक वर्षके भीतर स्वराज्य' दिलानेकी आपकी घोषणा[१] गलत साबित हुई है ? क्या आप यह कबूल नहीं करते कि बारडोली में आपकी कलाबाजी[२] से गुन्टूरकी जनता के बीच बड़ी घबराहट फैल गई जो आपके कार्यक्रम के अनुसार बड़ी वीरता और मनगीसे काफी समय से कर देना बन्द किये हुए थी ? [३]

क्या हम पूछ सकते हैं कि खिलाफत आन्दोलन में आपके पड़ने और उसके फलस्वरूप थोड़ेसे धर्मांध मुसलमानों के हाथोंमें कांग्रेसके खेलनेका क्या फल हुआ ? जिस हिन्दू-मुस्लिम एकताके बारेमें आपने इतना लिखा और कहा है, जिसके नाम पर आपने सभी हिन्दुओं से इतनी अपील की है कि वे अपने मुसलमान भाइयोंसे मेल-मिलाप करें, क्या वही एकता मुसलमानों के संकट की घड़ी टलते ही बालूके किले-सी ढह नहीं गई ? क्या आप अपनी पवित्र शिक्षाओं से कभी इसकी

  1. १. देखिए खण्ड १९, पृष्ठ १६२-६६ और परिशिष्ट १ ।
  2. २. अर्थात् १२ फरवरी, १९२२ को बारडोलीमें सत्याग्रह स्थगित करना; देखिए खण्ड २२, पृष्ठ ३९९-४०३ ।
  3. ३. देखिए खण्ड २२, पृष्ठ ३९८ ।