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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अवश्य करे। इसके विपरीत, जबतक दोनों ही समान रूपसे इच्छुक न हों तबतक सम्भोगकी अनुमति नहीं है।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी (एस० एन० १२६४५) की माइक्रोफिल्मसे ।

२६०. पत्र : श्रीप्रकाशको

बोलगढ़ (उड़ीसा)
११ दिसम्बर, १९२७

प्रिय श्रीप्रकाश,

इतने समयतक तुम्हारे पत्रका जवाब न देनेके लिए क्षमा करना, लेकिन मैंने अपनी शक्तिसे ज्यादा काम किया है और मेरे पास ढेर-सारे पत्रोंका उत्तर देनेके लिए कोई समय नहीं रहा है। मैं उत्कलमें जरा मार्गसे हटकर एक दूरके गांवमें आराम करनेपर विवश हुआ हूँ इसीलिए मुझे बकाया पत्र-व्यवहारसे निबटनेका समय मिला है, और उन्हें देखते हुए मैंने तुम्हारा पत्र पाया है। आश्रमसे तुम्हारे पत्रके साथ भेजी गई रसीद यह रही ।

'आज ' वालोंको शिकायत नहीं करनी चाहिए। मुफ्त प्रतियाँ केवल सुविख्यात अंग्रेजी अखबारोंको ही भेजी गई हैं। यहांतक कि विख्यात मित्रोंको भी प्रतियाँ नहीं भेजी गई हैं क्योंकि आखिरकार इस समय 'यंग इंडिया' और 'नवजीवन बहुत गरीब अखवार हैं। उनकी बिक्री १९२० और १९२१ जैसी नहीं है, और इसके बावजूद विज्ञापन आदि न लेनेकी बाधाओंके साथ ही आत्मनिर्भर रहनेके कठोर नियमका पालन किया जाता है, और जब कभी इन अखबारोंको चलानेके खर्चमें कुछ बच जाता है, तो वह सबका-सब सार्वजनिक कार्यमें लगा दिया जाता है । तब यदि 'आज' एक मुफ्त प्रतिकी अपेक्षा करे तो यह उतना ही पैसा गरीब लोगोंकी जेबसे निकालनेके समान होगा। यदि इस स्पष्टीकरणके बावजूद तुम या 'आज' कार्या- लयके कर्मचारी एक मुफ्त प्रतिकी अपेक्षा करें तो मुझे बताओ और मैं स्वामी आनन्दसे भेजनेको कह दूंगा । अवश्य मैं जानता हूँ कि 'आज' तुम्हारी तरफका एक अग्रणी अखबार है जैसा कि उदाहरणके लिए 'वसुमती' कलकत्तेमें है। लेकिन जहाँतक मैं जानता हूँ किसी भी देशी भाषावाले अखबारको अंग्रेजी प्रति नहीं दी गई है।

तुम मुझसे अपने मनकी बात अवश्य कहो, चाहे पत्र लिखकर या मेरे पास आकर। मैं तुम्हारे बोझ बँटाकर खुश होऊँगा । इसलिए मुझे एक ऐसा मित्र अवश्य मानो जो तुम्हारी बातोंको अपनेतक ही सहेजकर रखेगा और तुम्हारे बोझको हल्का करनेकी कोशिश करेगा। मैं जनवरीमें साबरमतीमें रहूँगा । मुझे दुख है कि उस महीनेमें मुझे कुछ दिनोंके लिए काठियावाड़ जाना होगा।[१] लेकिन यदि तुम वहाँ पूरे

  1. १. देखिए “ भाषण : काठियावाद राजनीतिक परिषद, पोरबन्दरमें , २२-१-१९२८ ।