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१३. भाषण : पुदुकोट्टामें

[१]

२१ सितम्बर, १९२७

अध्यक्ष महोदय और मित्रो,

अभिनन्दनपत्र तथा थैलीके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ और इससे भी अधिक अभिनन्दनपत्रको पढ़कर न सुनाने के लिए देता हूँ। मुझे आपको यह यकीन दिलाने की जरूरत नहीं है कि मैंने आपका अभिनन्दनपत्र पढ़ लिया है। आपने कहा कि आप काफी दिनोंसे मेरे यहां आनेकी प्रतीक्षा में थे। यह प्रतीक्षा दोनों तरफसे थी । अपने अभिनन्दनपत्रमें आपने बताया है कि आप चरखा और खादीके सन्देश में विश्वास करते हैं और यह भी बताया है कि यहाँ कृषक वर्गकी गरीबीके कारण आपको चरखेके सन्देशकी खास तौरपर जरूरत है। देशके अन्य भागों में प्राप्त अनुभवके आधारपर में यह समझता हूँ कि आपने जो-कुछ कहा वह अक्षरश: ठीक है। आपने यह भो बताया कि आपकी विधान परिषदने शालाओंमें हाथ-कताई अनिवार्य करनेका एक प्रस्ताव पास कर दिया है। मैं परिषदको इस बुद्धिमत्तापूर्ण तथा बहुत जरूरी प्रस्तावको पास करनेके लिए बधाई देता हूँ। मैं चाहता हूँ कि आप और में तथा अन्य सब लोग अपने इन विश्वासों तथा प्रस्तावोंको व्यवहारमें लायें । प्रस्ताव पास करना और विश्वास रखना तो दुनियाके सबसे आसान काम है क्योंकि इनमें प्रस्तावोंको माननेवालों तथा उनके पेश करनेवालोंका कुछ जाता नहीं। लेकिन उन्हें व्यवहार में लानेका अर्थ है संगठन, काम कैसे किया जाये यह सीखना, लोगोंके बीचमें जाना और इस सिलसिलेमें अन्य बहुत कुछ करना । इस समय सुहावनी वर्षा आने लगी है, और में आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैं अपना भाषण लम्बा नहीं करना चाहता। में भाषणका अन्त इस प्रार्थनासे करना चाहूँगा कि ईश्वर आपके विश्वासको कार्यरूपमें परिणत करनेके लिए आपको अपेक्षित बल तथा बुद्धि प्रदान करे। यदि आपने मेरी तमिल- नाडुकी यात्रा के दौरान दिये गये मेरे भाषणोंको पढ़ा हो तो यकीनन आप जान गये होंगे कि अगर वर्षाका डर नहीं होता तो में क्या कहता। क्योंकि जो बातें में मद्रास तथा अन्य स्थानोंमें कहता रहा हूँ वे आपके लिए भी हैं। अब क्योंकि वर्षा कुछ क्षणके लिए थम गई लगती है, मैं उनमें से कुछेक बातोंको संक्षेपमें बताऊँगा।[२]

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, २३-९-१९२७
  1. १. नागरिकों द्वारा दिये गये अभिनन्दनपत्रके उत्तरमें।
  2. २. इसके बाद गांधीजीने मद्यनिषेध, अस्पृश्यता, सफाई, ब्राह्मण-अब्राह्मण प्रश्न तथा चरखा-कोषके सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त किये ।