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२५५. पत्र : हेनरी नीलको

स्थायी पता : आश्रम, साबरमती
११ दिसम्बर, १९२७

प्रिय मित्र,

आपका कृपापत्र और संलग्न सामग्री मुझे मिली। मुझे नहीं लगता कि मैं सचमुच कुछ ऐसी चीज लिख सकता हूँ जो आपके उपयुक्त हो । इसलिए आपके अनुरोधको न मानने के लिए आप मुझे क्षमा करेंगे ।[१]

जहाँतक बाल-कल्याणका सम्बन्ध है, जिस अर्थमें लॉर्ड लिटनने कहा है उस अर्थमें मैंने इस समस्यामें दिलचस्पी नहीं ली है, लेकिन एक अर्थमें, जिसे मैं ज्यादा ऊँचा मानता हूँ और जिसमें कुछ हजार नहीं, बल्कि कई करोड़ बच्चे शामिल हैं, मैं उनके कल्याण-कार्यमें बराबर लगा हुआ हूँ; क्योंकि हाथ-कताई आन्दोलनका उद्देश्य इस देशके लाखों भूखों मर रहे लोगोंको प्रभावित करनेका है, जिनमें छोटे बच्चे भी शामिल हैं। और यदि मैं सफल होता हूँ तो मैं जानता हूँ कि जिस ढंगके बाल-कल्याणकी आपको और लॉर्ड लिटनको जानकारी है, उसका होना सुनिश्चित है।

जो छपा हुआ पर्चा आपने भेजा है उसका उत्तर देना कठिन है क्योंकि लेखकने उसी चीजको एक भिन्न दृष्टिकोण से देखा है। इसलिए मेरी कोई इच्छा उस लेखकी आलोचना करनेकी नहीं है और मैं उसे आपकी इच्छाके अनुसार इसके साथ ही लौटा रहा हूँ ।

हृदयसे आपका,

जज हेनरी नील
अंग्रेजी (एस० एन० १२५४५) की फोटो-नकलसे ।

२५६. पत्र : अल्पवयस्क रक्षा समिति, कोचीनके मन्त्रीको

स्थायी पता : आश्रम, साबरमती
११ दिसम्बर, १९२७

प्रिय मित्र,

लगातार यात्राके कारण मैं आपका पत्र आज ही पा सका । देवदासी प्रथाकी निन्दा करनेमें मुझे कोई हिचक नहीं है, लेकिन यह देखते हुए कि मैं आपकी समितिके किसी भी सदस्यको व्यक्तिगत रूपसे नहीं जानता, मेरे लिए आपकी अपीलके बारेमें

  1. १. हेनरी नीलने अपने ८-१०-१९२७ के पत्रमें गांधीजीसे “भारतके लोगोंपर ईसा मसीहकी शिक्षाके प्रभावके बारेमें एक विस्तृत वक्तव्य " माँगा था तथा अन्य विषयोंपर भी उनके विचार मांगे थे ।