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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उड़ीसामें धन एकत्र करने नहीं आया हूँ, लेकिन खादीकी खातिर मैं गरीबोंसे भी भीख माँगने में नहीं हिचकता। ईश्वर आपपर कृपादृष्टि रखे ।

[ अंग्रेजीसे ]
उड़ीसा सरकारके रेकार्डोंसे।

२५४. पत्र : एडा रोजेनग्रीनको

स्थायी पता : आश्रम, साबरमती
११ दिसम्बर, १९२७

प्रिय मित्र,

मुझे आपका पत्र मिला,[१] धन्यवाद । आप 'सेल्फ रेस्ट्रेन्ट वर्सेस सेल्फ इडलजेंस' नामक पुस्तकका अनुवाद कर सकती हैं। जहाँतक शर्तोंका सवाल है, वह मैं आपपर छोड़ता हूँ। जो कुछ भी दिया जायेगा वह सार्वजनिक उपयोगमें लगाया जायेगा ।

पश्चिमकी स्त्रियोंके बारेमें आप जो कहती हैं वह केवल आंशिक रूपमें ही सही है और शायद कुछ हदतक भारतकी स्त्रियोंके बारेमें भी सच है, लेकिन ये आधु- निकताके रंग में रंगी उच्च वर्गकी स्त्रियाँ हैं और बहुत कम हैं। जहांतक स्त्रियोंकी बहुत बड़ी संख्याका सवाल है, वे अपने ही कामोंमें इतनी व्यस्त रहती हैं कि विषय-वासना- से सम्बन्धित विचारोंके लिए उनके पास अवकाश ही नहीं है। यह तो पुरुषका ही गुण है कि वासना जब उसपर हावी हो जाये तो वह आक्रामक हो उठता है । सहिष्णुताके सम्बन्धमें आप जो कहती हैं वह दुर्भाग्यवश संसार-भरकी औरतोंके मामलेमें बिलकुल सच है और मैं नहीं समझता कि स्त्रियोंमें से अधिकांश इस कमजोरीको दूर कर सकेंगी। शायद उनके शरीरकी संरचना ही ऐसी है जो प्रभावशील विरोधकी वृत्तिके विकासमें बाधक है, उन चन्द सुनिश्चित परिस्थितियोंको छोड़कर जो विशेष संस्कृतिकी देन हैं। और चूंकि स्त्री सहिष्णु होती है इसलिए मैंने कहा है कि स्त्रीके बजाय वह पुरुष ही है जो ज्यादा दोषी होता है। और पश्चिमकी आधुनिकाएँ भी चतुराईसे पुरुषोंको अपनी ओर आकर्षित करनेके सिवा कुछ नहीं करती। स्त्रियोंके द्वारा पुरुषोंके प्रति बलात्कारका रुख अपनाये जानेके मैं ज्यादा दृष्टान्त नहीं जानता। स्त्री में अपनेको नियन्त्रित करने और घुटकर रह जानेकी विलक्षण क्षमता होती है और चाहे उसके दिलमें वासनाका तूफान ही क्यों न उठ रहा हो, वह आक्रामक नहीं होती।

हृदयसे आपका,

एम० एडा रोजेनग्रीन
लिडिनगो, स्वीडन
अंग्रेजी (एस० एन० १२५४१) की फोटो-नकलसे ।
  1. १. २८-९-१९२७का पत्र जिसमें रोजेनग्रीनने गांधीजीकी पुस्तकका स्वीडिश भाषामें अनुवाद करनेकी इजाजत चाही थी।