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२५२. पत्र: चक्रवर्ती राजगोपालाचारीको

बोलगढ़
१० दिसम्बर, १९२७

प्रिय सी० आर०,

तुम्हें यह जानकर आश्चर्य होगा कि मुझे एक छोटे-से सुन्दर गाँवमें तीन दिन शान्तिसे बितानेको मिले हैं। इससे पहले, लंकाके कार्यक्रमसे भी खराब हो सकता हो तो वह गंजमका कार्यक्रम रहा, हालांकि वहाँ बीस हजार मिले। उसके बाद एक डाक्टर मेरा रक्तचाप लेने आया । आपने रक्तचाप लेनेका जैसा प्रबन्ध किया था, वैसा ही प्रबन्ध निरंजन बाबूने किया है। जब डाक्टरने १९० देखा तो वह डर गया, और साराका-सारा कार्यक्रम फिरसे बनाया गया है। इसीका फल यह आराम है। व्यक्तिगत रूपसे मैं डाक्टरके पढ़ेपर अविश्वास करता हूँ । तथापि उसने गलत भी पढ़ा हो तो उससे लाभ ही हुआ है। कटकसे आये एक नये डाक्टरने रक्तचाप १५५ और १६५ के बीच पढ़ा है। उसका खुदका कहना है कि वह १५५ और १६० के बीच है। महादेव और प्यारेलालने १६५ पढ़ा । हृत्स्फारी ९०-१०० है । यदि इन सबको ठीक पढ़ा गया है तो रक्तचाप वैसा ही है जैसा पहले था और चिन्ताकी कोई बात नहीं है । तथापि यह मैं तुम्हें रक्तचापके बारेमें बतानेको नहीं लिख रहा हूँ। तुम्हारे लिए इतना जानना काफी है कि मैं ठीक-ठाक हूँ ।

संलग्न पत्र भेजनेके खयालसे यह पत्र मैं बोलकर लिखा रहा हूँ । यदि तुम गाँवकी जाँच करके यह पता चलाने के लिए किसीको भेज सको कि हम उस प्रस्तावको स्वीकार कर सकते हैं या नहीं, तो कृपया भेज दो। किसी भी हालतमें तुम पत्रलेखक श्री जी० सुब्रमण्यम्से खुद पत्र-व्यवहार करो। मैं उन्हें एक पोस्टकार्ड भेजकर सूचित कर रहा हूँ कि वह तुमसे पत्रकी अपेक्षा करें।

मैं तुम्हें डा० जोजेफका पत्र मी मेज रहा हूँ । उनका सुझाव मुझे ठीक लगता है। मैं सोचता हूँ कि हमें नागरकोइलमें कुछ काम करना चाहिए, और अगर आपके पास कोई अन्य योजना न हो तो कृपया उनसे पत्र व्यवहार करो और लिख दो कि उनका सुझाव मान्य है, और उसे संघकी[१] परिषदके सामने रखा जायेगा, और तुम उन्हें जल्दी ही सूचित करोगे। इस बीच तुम उन्हें सूतका नमूना भेज सकते हो जो बह चाहते हैं। हमें सूत उठा सकना चाहिए, और अगर वहाँ स्थानीय बुनकर हों तो हम उसे शायद वहीं बुनवा भी सकें। डा० जोजेफको कृपया जल्दी लिख दो। मैंने उन्हें बता दिया है कि सुझाव मुझे ठीक लगता है और मैंने उनका पत्र विचारार्थ तुम्हारे पास भेज दिया है।

  1. १. अखिल भारतीय चरखा संघ |