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पत्र: सी० एफ० एन्ड्रयूजको

डरिए । मैं यहाँ कल दो बजेतक हूँ। आपको जो-कुछ कहना हो आप आकर मुझे बता सकते हैं।[१]

आपके अभिनन्दनपत्रमें कहा गया है कि आपके यहाँ खादीका कोई काम नहीं होता । आप अपने जिलेके अन्य भागोंके खादी कार्यकर्ताओंसे परामर्श कीजिए, और जबतक आप स्थानीय तौरपर खादी नहीं तैयार करने लगते तबतक उड़ीसामें बनी खादी खरीदिए ।

[ अंग्रेजीसे ]

हिन्दू, १२-१२-१९२७

यंग इंडिया, २२-१२-१९२७

२५१. पत्र : सी० एफ० एन्ड्रयूजको

[ बोलगढ़,
१० दिसम्बर, १९२७]

[२]

प्रिय चार्ली,

अब मैं कार्यक्रमपर फिरसे विचार कर रहा हूँ । सम्बलपुरको छोड़ दिया जायेगा । मैं कृतज्ञ हूँ कि तुम मुझे जमशेदपुर नहीं भेज रहे हो। मैं यहाँ सोमवारतक हूँ। मैं साखीगोपाल सोमवारकी रातको और बालासोर बुधवारको पहुँचूँगा। शेष अनिश्चित है। हाँ, खड़गपुरकी विजय[३] तो निश्चय ही ईश्वरकी देन थी ।

सप्रेम,

मोहन

[ पुनश्च : ]
मैं अब बेहतर हूँ ।

सी० एफ० एन्ड्रयूज

बालासोर

अंग्रेजी (जी० एन० २६२५) की फोटो-नकलसे ।
  1. १. यह अनुच्छेद यंग इंडिया में प्रकाशित महादेव देसाईके “साप्ताहिक पत्र" से लिया गया है।
  2. २. डाककी मुहरसे।
  3. ३. अगस्त-सितम्बर १९२७ में बंगाल-नागपुर रेलवे प्रशासनने खड़गपुर वर्कशॉपमें १६०० कर्मचारियोंकी छँटनी करनेका निश्चय किया था। कर्मचारियोंने सत्याग्रहका सहारा लिया। वर्कशॉप १२ सितम्बरको बन्द कर दिया गया और ८ दिसम्बरको खोला गया, और तब एक जाँचके परिणामस्वरूप कुछ कर्मचारियोंको, जिन्हें निकाल दिया गया था, फिरसे नौकरीपर बहाल कर दिया गया, और जिन कर्मचारियोंकी छँटनी की गई थी उनमें से कुछको दी जानेवाली मुभावजेकी रकम बढ़ा दी गई। ( इंडिया इन १९२७-२८, पृष्ठ १७७-८)। ३५-२५