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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
मन से और प्रसन्नचित्त होकर गाना गा रहा है। मेरा दिल करता है कि मैं वहाँ जाऊँ और उसके नन्हें पैरों को धूल उठा लूं। चूंकि में अपनी भावना को गीत में उतनी सरलतासे नहीं उँडेल सकता जितना कि वह नन्हा बच्चा,इसलिए मेरा एकमात्र चारा मौन रहने में ही है।

जब हम देखते हैं कि अनन्त आकाशके सुनील चंदोबेके तले प्रकृतिका यह नित्य नवीन मन्दिर हमें आमंत्रण दे रहा है कि सच्ची पूजा करनी हो तो धर्मके नाम पर लड़ने-झगड़ने और ईश्वरके नामको बदनाम करनेके बजाय यहाँ आओ तब ऐसा लगने लगता है कि ये मन्दिर और मस्जिदें और गिरजे, जो दम्भ और ढकोसलोंको छिपाते हैं और जिनके दरवाजे गरीबोंके लिए बन्द होते हैं, ईश्वर और ईश्वरकी पूजाका उपहास मात्र हैं।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ८-१२-१९२७

२५०. भाषण : बानपुरमें

८ दिसम्बर, २९२७

आपने जो अभिनन्दनपत्र और थैली भेंट की है, उसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। मैंने अपने डाक्टरोंकी सलाहके खयालसे बानपुर आनेका विचार त्याग दिया था। लेकिन जब मुझे पता चला कि पुलिस गाँववालोंको धमका रही है और चेतावनी दे रही है कि यदि वे सभामें आयेंगे तो उन्हें घोड़ोंके पैरों तले रौंद दिया जायेगा और सैनिक उन्हें गोलियोंसे भून देंगे तब मैंने बानपुर आनेका निश्चय कर लिया ।

आपको भय क्यों होना चाहिए ? जिस व्यक्तिने कोई अपराध नहीं किया है उसे भय करनेकी जरूरत नहीं है। और याद रखिए कि यदि आप भयभीत नहीं होंगे तो आपको कोई भयभीत नहीं करेगा। अन्ततः पुलिसवाले हमारे भाई-बन्धु ही हैं। जब वे आपको डराने-धमकाने आयें तो आप उनसे पूछिए कि ऐसा करके वे क्या पाना चाहते हैं। अगर वे आपको जेल ले जायें तो कोई प्रतिरोध मत कीजिए । अगर वे आपको गाली दें तो आप बदलेमें उन्हें गाली न देकर उनकी गलतीको हँसीमें टाल दीजिए। यदि वे आपको मारें-पीटें तो बदलेमें अपना हाथ मत उठाइए, बल्कि मामलेकी रिपोर्ट अपने सबसे निकटवर्ती जन-प्रतिनिधिसे कीजिए। मैं आपको अदालतमें जानेके खिलाफ आगाह करता हूँ, क्योंकि अन्ततः हमारी इच्छा यह नहीं है कि पुलिसको दंड मिले, बल्कि यह है कि उसे अपने कियेपर पछतावा हो । लेकिन आपको लगे कि आपको अदालतमें जाना चाहिए तो आप जा सकते हैं। किसी मी हालतमें आतंकसे दबिए मत, क्योंकि भय तो बीमारीसे भी बुरी चीज है। जो मनुष्य किसी अन्य मनुष्यसे डरता है वह मनुष्यत्वसे च्युत हो जाता है। केवल ईश्वरसे