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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मनुष्यका मन राई की पुड़िया जैसा है। जैसे पुड़ियाके फट जाने पर बिखरे हुए दाने चुनकर जमा करना कठिन है, वैसे ही जब मनुष्य का मन कई तरफ दौड़ता हो और संसारके जालमें फँस गया हो, तब उसे मोड़कर एक जगह लगाना बहुत कठिन है। बच्चोंका मन कई तरफनहीं दौड़ता, इसलिए उसे किसी चीजपर आसानीसे एकाग्र किया जा सकता है। किन्तु बूढेका मन दुनियामें ही रमा रहने के कारण उसे इधर से खींचकर ईश्वर की तरफ मोड़ना बहुत कठिन है।

'वेद' पढ़नेके अधिकारके बारेमें मैंने सुना था, परन्तु यह मुझे कभी खयालतक न था कि बैंकके मैनेजरने जिस अधिकारकी कल्पनाकी थी उसकी जरूरत 'गीता' लिए भी पड़ेगी। वह यह बता देते तो अच्छा होता कि उस अधिकारके लिए क्या गुण जरूरी है। स्वयं 'गीता' ने ही स्पष्ट शब्दोंमें कहा है कि 'गीता' निन्दकके सिवा और सबके लिए है। हिन्दू विद्यार्थी यदि 'गीता' नहीं पढ़ सकते तब तो वे शायद कोई भी धर्म-ग्रन्थ नहीं पढ़ सकते। सच पूछो तो हिन्दू धर्मकी मूल कल्पना ही यह है कि विद्यार्थियोंका जीवन ब्रह्मचारीका है और उन्हें इस जीवनकी शुरुआत धर्मके ज्ञान और धर्मके आचरणसे करनी चाहिए, जिससे जो-कुछ वे सीखते हैं, उसे पचा सकें और धर्माचरणको अपने जीवन में उतार सकें। पुराने जमानेका विद्यार्थी यह जानने से पहले ही कि मेरा धर्म क्या है, उसपर अमल करने लग जाता था; और इस तरह अमल करनेके बाद उसे जो ज्ञान मिलता था उसके आधारपर अपने नियत किये गये आचरणका रहस्य वह समझ सकता था ।

इस तरह अधिकार तो उस समय भी था । परन्तु वह अधिकार पाँच यम-- अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य -- रूपी सदाचरणका था। धर्मका अध्ययन करनेकी इच्छा रखनेवाले हर आदमीको ये नियम पालने पड़ते थे। धर्मके इन आधारभूत सिद्धान्तोंकी जरूरत सिद्ध करनेके लिए धर्म-ग्रन्थोंसे प्रमाण जुटानेकी जरूरत नहीं रहती।

किन्तु आजकलके इस तरहके अनेक व्यापक अर्थवाले शब्दोंकी तरह 'अधिकार' शब्द भी विकृत हो गया है, और अब एक धर्म-भ्रष्ट मनुष्यको भी सिर्फ ब्राह्मण कहलानेके कारण ही शास्त्रोंके पठनका और उन्हें हमें समझानेका अधिकार है ऐसा माना जाता है; और दूसरे एक आदमीको, जिसे किसी खास स्थितिमें जन्म लेनेके कारण अछूत' पद मिल गया है -- भले ही वह कितना ही धर्मात्मा हो -- शास्त्र पढ़नेकी मनाही है।

परन्तु जिस 'महाभारत' का 'गीता' एक भाग है, उसके रचयिताने इस पागलपन-भरे निषेधके विरोधमें ही यह महाकाव्य लिखा और वर्ण या जातिका जरा भी भेद किये बिना सबको उसे पढ़नेकी आजादी दे दी। मेरा खयाल है कि उसने इसमें सिर्फ मेरे द्वारा ऊपर बताये हुए यमोंके पालनकी ही शर्त रखी होगी। 'मेरा खयाल है। ये शब्द मैंने इसलिए जोड़े हैं कि यह लिखते समय मुझे याद नहीं आता कि महाभारत' पढ़नेके लिए यमोंके पालनकी शर्त रखी गई है या नहीं। किन्तु अनुभव