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भाषण : सार्वजनिक सभा, त्रिचनापल्ली में

पीनेका पानी लेते हैं, उसमें अपनी गन्दगी धोना ठीक नहीं है। हमारे नदी-तट युवक और वृद्ध सभीके लिए मनोरंजनके स्थान होने चाहिए; उन्हें ऐसी जगह होना चाहिए जहाँ हम पूरी बेफिक्रीसे और आरामके साथ लेट सकें। लेकिन होता यह है कि नदीके तटोंको ही हम नंगे पैर चलनेके भी अयोग्य बना देते हैं। इस समयतक यह बात बिलकुल स्पष्ट हो चुकी है कि गन्दी आदतोंके कारण ही हैजा पैदा होता है। आप गन्दा पानी पीना बन्द कर दें और आवश्यक सावधानी बरतें तो हैजेका कोई भय नहीं रह जाता। मुझे बताया गया है कि जब दक्षिण में बाढ़का प्रकोप हुआ था, जैसा कि इस समय उड़ीसा में है, उस समय त्रिचनापल्ली और श्रीरंगम्में हैजा फूट पड़ा था, और यह ईश्वरका दण्ड ही था, क्योंकि हम लोग उसी नदीका पानी पीते थे जिसे हमने स्वयं गन्दा कर रखा था। मेरा विश्वास है कि धरती माता और अपनी नदीके जलको स्वच्छ न रखकर हमने ईश्वर और मनुष्यके प्रति पाप किया था । 'धरती माता' को जिस तरह हम गन्दा करते हैं, उस तरह गन्दा करना और जिन नदियोंकी हम पूजा करते हैं उन्हें गन्दा करना कितना घोर पाप है। त्रिचनापल्ली और श्रीरंगम्‌के नवयुवकोंके लिए वास्तव में यह काम बहुत आसान है कि वे लोगोंको इस मामलेमें शिक्षित करनेका और जबतक यह बुराई दूर न हो जाये तबतक रोज सुबह नदीके तटपर जाकर लोगोंको समझाने-बुझानेका निश्चय कर लें। इस कामको करने के लिए नगरपालिकाका सदस्य बनना अथवा किसी सार्वजनिक संस्था या सरकार द्वारा नियुक्त किया जाना जरूरी नहीं है, न ही इसमें बहुत समयकी जरूरत है। इसके लिए केवल इतना ही जरूरी है कि आपमें स्वच्छता और सफाईका मामूली ज्ञान और आबादीके स्वस्थ्यको हानि पहुँचानेवाली इस बुराईको दूर करनेका संकल्प हो । इसलिए मैं आशा करता हूँ कि जो सामान्य-सा सन्देश मैंने दिया है उसे आप सब समझेंगे और त्रिचनापल्ली तथा श्रीरंगम्के सम्मानको पुनः प्रतिष्ठित करने तथा कावेरीको पवित्र बनानेका प्रयत्न करेंगे ।

इसके बाद महात्माजीने कहा कि यहाँ मजदूरोंकी आबादी बहुत बड़ी है, और नौजवानोंके सामने शराब पीनेकी बुराईको दूर करनेके लिए मजदूरोंके बीच सेवाकार्य करनेका बड़ा मौका है। जिस प्रकार अस्वच्छतासे आपका स्वास्थ्य नष्ट हो रहा है उसी प्रकार शराबका अभिशाप मजदूरोंके स्वास्थ्य और चरित्रको नष्ट कर रहा है। [अन्तमें गांधीजीने कहा :

हमारे बीच वास्तविक राष्ट्रीय चेतना जाग्रत हो रही है। यह जागृति आवश्यक कार्योंके रूप में व्यक्त होनी चाहिए।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, २१-९-१९२७