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२४७. पत्र : मगनलाल गांधीको

मंगलवार [६ दिसम्बर, १९२७ ]

[१]

चि० मगनलाल,

तुम्हारा पत्र मिला। मैं तुम्हारे पत्रको प्रतीक्षा करता ही रहता हूँ किन्तु यदि तुम्हारा पत्र नहीं मिलता तो यह मान लेता हूँ कि इस प्रकार मैं तुम्हारा स्तवन तो कर ही रहा था । जब हम कोई अप्रिय बात कहना चाहते हैं तो वह मधुर ही मानी जाती है क्योंकि वह बात सच ही होती है और सच सदैव मधुर होता है । अतः तुम मुझसे जो-कुछ कहना उचित समझो उसे कहनेमें झिझकना नहीं । तुमने जिन पत्रोंके बारेमें लिखा है वे मुझे नहीं मिले। 'सत्यना प्रयोगो' में बहुत-सी भूलें रह गई होंगी, हालाँकि मैं काफी सावधानी बरतता हूँ। किन्तु जब याददाश्त ही धोखा दे जाये तो मैं किसके सामने अपना दुखड़ा रोऊँ ? सामान्य या विशेष किसी भी तथ्यात्मक भूलकी ओर मेरा ध्यान अवश्य दिलाना ।

'अजहुँ न निकसे प्राण कठोर' ।[२] मुझे तो भय है । महादेवने तो इसे अपनी दृष्टिसे गाया था। अभिप्राय तो जब वह सुनाये तब जान पाओगे। फिलहाल तुम जिस काममें लीन हो गये हो उसमें लीन होना अच्छा ही हुआ ।[३] तुम आश्रम आते- जाते रहते हो यह भी ठीक ही है। तुम अपने सुझाव और टिप्पणियाँ तो भेजते ही रहना । आदर्श गाँवको सचमुचका आदर्श गाँव बनानेमें अपनी जान लड़ा देना; तभी उसमें प्राणवान मनुष्य रह सकेंगे ।

बा वहाँ देवदासके पास गई है। अब और अधिक लिखनेका समय नहीं है ।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (सी० डब्ल्यू० ७७६९) से ।
सौजन्य : राधाबहन चौधरी
 
  1. १. कस्तूरबा गांधी के देवदासके पास जानेके उल्लेखसे जान पड़ता है कि यह पत्र भी उसी समय लिखा गया होगा जबकि “पत्र : मणिलाल व सुशीला गांधीको ", ५-१२-१९२७ लिखा गया था।
  2. २. सन्त दादूके भजनकी पंक्ति।
  3. ३. इन दिनों मगनलालने ग्रामोंमें रचनात्मक कार्य करना आरम्भ कर दिया था।